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रूसो

1712 - 1778

18वीं सदी के महान दार्शनिक, लेखक, राजनीतिक चिंतक और समाज सुधारक।

18वीं सदी के महान दार्शनिक, लेखक, राजनीतिक चिंतक और समाज सुधारक।

रूसो के उद्धरण

अंतःकरण आत्मा की आवाज़ है, मनोवेग शरीर की आवाज़ हैं।

यथार्थता के जगत की अपनी सीमाएँ हैं; कल्पना का जगत असीम है। हम एक को बढ़ा नहीं सकते अतः हमें दूसरे को छोटा करना चाहिए, क्योंकि उनके अंतर से ही वे बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं जो हमें दुखी कर देती हैं।

बचपन विवेक की निद्रा है।

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