मुक्तानंद के उद्धरण

प्रेम तो हृदय का अहैतुक स्नेह है। मानव का प्रेम किसी न किसी हेतु से होता है। वह प्रेम नहीं स्वार्थ है, गरज मात्र है। केवल भगवान का प्रेम शुद्ध प्रेम है। उसका स्वभाव भी प्रेम, उसकी कृपा भी प्रेम, उसका देना भी प्रेम, उसका लेना भी प्रेम है।