इंद्र विद्यावाचस्पति के उद्धरण

मनोवैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से जेल को अत्यंत उपयुक्त परीक्षण-शाला कह सकते है। वहाँ कोई व्यक्ति देर तक मुँह पर नक़ाब नहीं रख सकता। जल्दी या देर में उसका असली रूप प्रकट हो ही जाता है जेल में मनुष्य के आंतरिक गुण और अवगुण सात परदों को फाड़कर बाहर निकल आते हैं।
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साहसिक कार्य बड़ा हो या छोटा, उसे कभी दूसरों के बलबूते पर आरंभ न करो। अपने भरोसे पर, पार जाने के लिए गंगा में भी कूद पड़ो, परंतु केवल दूसरे के सहारे का भरोसा रखकर घुटनों तक के पानी में भी पाँव न रखो।
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