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भारतेंदु हरिश्चंद्र

1850 - 1885 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 10

प्रेम प्रेम सब ही कहत प्रेम जान्यौ कोय।

जो पै जानहि प्रेम तो मरै जगत क्यों रोय॥

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लोक-लाज की गांठरी पहिले देइ डुबाय।

प्रेम-सरोवर पंथ में पाछें राखै पाय॥

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प्रेम सकल श्रुति-सार है प्रेम सकल स्मृति-मूल।

प्रेम पुरान-प्रमाण है कोउ प्रेम के तूल॥

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बिनु गुन जोबन रूप धन, बिनु स्वारथ हित जानि।

शुद्ध कामना तें रहित, प्रेम सकल रस-खानि॥

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सब दीननि की दीनता, सब पापिन को पाप।

सिमट आइ मों में रह्यो, यह मन समुझहु आप॥

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गीत 4

 

पद 17

सबद 1

 

सवैया 3

 

यात्रा वृत्तांत 4

 

नाटक 1

 

पुस्तकें 3

 

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