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वाराणसी के रचनाकार

कुल: 58

हिंदी-संस्कृत के विद्वान्, साहित्य-इतिहासकार, निबंधकार और समालोचक। हिंदी में संस्कृत साहित्य पर चिंतन के लिए उल्लेखनीय।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

धूमिल

1936 - 1975

‘अकविता’ आंदोलन के समय उभरे हिंदी के चर्चित कवि। मरणोपरांत साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत समालोचक, निबंधकार, उपन्यासकार और साहित्य-इतिहासकार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और नाटककार।

कबीर

1398 - 1518

मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि।

हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास-सम्राट के रूप में समादृत। हिंदी साहित्य में आदर्शोन्मुख-यथार्थवाद के प्रणेता।

अत्यंत समादृत भारतीय लेखक। हिंदी आलोचना के शीर्षस्थ आलोचक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

रैदास

1398 - 1518

भक्ति की ज्ञानमार्गी एवं प्रेममार्गी शाख़ाओं के मध्य सेतु। मीरा के गुरु।

रामभक्ति शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। कीर्ति का आधार-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’। उत्तर भारत के मानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भक्त कवि।

सुपरिचित नाट्य-आलोचक और उपन्यासकार। हिंदी नाटकों पर विधिवत शोधकार्य के लिए उल्लेखनीय।

द्विवेदीयुगीन निबंधकार और अनुरचनाकर। विदेशी व्यक्तित्वों के जीवनी-लेखक के रूप में भी योगदान।

आरंभिक हिंदी गद्य के उन्नायक। नागरी लिपि के प्रयोग हेतु प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए उल्लेखनीय।

हिंदी की अग्रणी एवं सुप्रतिष्ठित रचनाकार।

आठवें दशक के प्रमुख कवि। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

नई पीढ़ी के कवि-लेखक।

प्रसादयुगीन महत्त्वपूर्ण कवि-गद्यकार-संपादक और कला-इतिहासकार। भारतीय कला आंदोलन में योगदान और गद्य-गीत के प्रणयन के लिए उल्लेखनीय।

नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापक सदस्य और सभापति। भारतेंदु युग में साहित्यिक योगदान के लिए उल्लेखनीय।

हिन्दी गद्य और आलोचना के अधिकारी विद्वान्। संतुलित आलोचक। 'हिन्दी का गद्य साहित्य' नामक कृति के लिए ख्यात।

रामानंद के बारह शिष्यों में से एक। जाति-प्रथा के विरोधी। सैन समुदाय के आराध्य।

साहित्यकार, शिक्षाविद् और राजनेता। भारतीय सांस्कृतिक और समाजवादी विचारों के लिए उल्लेखनीय।

साहित्यसेवी, पत्रकार और स्वतंत्रता-सेनानी। ‘आज’ समाचार-पत्र के प्रकाशन और ‘काशी विद्यापीठ’ की स्थापना के लिए उल्लेखनीय।

सुचर्चित गीतकार।

समादृत कवि-आलोचक। ‘जायसी’ शीर्षक आलोचना-पुस्तक के लिए उल्लेखनीय।

सुपरिचित कवि-आलोचक और अनुवादक। रंगकर्म में भी सक्रिय। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।

हिंदी-नवजागरण की पहली लेखिका, जो 'बंग महिला' छद्मनाम से लिखती थीं। वास्तविक नाम राजेंद्रबाला घोष। हिन्दी की आरंभिक कहानियों में इनकी कहानी 'दुलाई वाली' भी शामिल।

नई पीढ़ी की कवयित्री। शोध, गद्य-लेखन और अनुवाद-कार्य में भी सक्रिय।

रीतिग्रंथ रचना और प्रबंध रचना, दोनों में समान रूप से कुशल कवि और अनुवादक। प्रांजल और सुव्यवस्थित भाषा के लिए स्मरणीय।

नई पीढ़ी की कवयित्री।

रीतिकालीन कवि। वीरकाव्य के रचयिता।

सुपरिचित कवि-आलोचक।

'राम सतसई' के रचयिता। शृंगार की सरस उद्भावना और वाक् चातुर्य के कवि।

समादृत कवि-लेखक और अनुवादक। ‘कवि’ पत्रिका के संपादक। ‘मुक्तिबोध की आत्मकथा’ शीर्षक पुस्तक के लिए उल्लेखनीय।

'भारतेंदु मंडल' के कवियों में से एक। कविता की भाषा और शिल्प रीतिकालीन। 'काशी कवितावर्धिनी सभा’ द्वारा 'सुकवि' की उपाधि से विभूषित।

नई पीढ़ी की कवयित्री। संगीत में रुचि।

प्राचीन शैली में लिखने वाले आधुनिक कवियों में से एक। अलंकार ग्रंथ 'भारती भूषण' कीर्ति का आधार ग्रंथ।

बलवीर

1859 - 1906

भारतेंदु मंडल के कवियों में से एक। भारत जीवन प्रेस के संस्थापक। प्राचीन और लुप्तप्रायः पुस्तकों को पुनः प्रकाशित और संवर्द्धित करने के लिए स्मरणीय।

संस्कृत-हिंदी-अँग्रेज़ी के रचनाकार। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग से संबद्ध रहे।

वास्तविक नाम गोपालचंद्र। आधुनिक साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता।

ब्रजभाषा के आधुनिक कवि। मर्यादित शृंगार के लिए ख्यात। उद्धव शतक कीर्ति का आधार ग्रंथ। 'जकी' उपनाम से उर्दू में भी शायरी की।

सुपरिचित कवि।

रीतिकालीन कवि। देवनदी गंगा की स्तुति में लिखित ग्रंथ 'गंगाभरण' से प्रसिद्ध।

रीतिकालीन कवि गोकुलनाथ के शिष्य और महाभारत के भाषा अनुवादक।

संस्कृत के सुप्रसिद्ध कवि-विद्वान। 'विजयनाटकम्' कृति के लिए उल्लेखनीय।

सुपरिचित कवि-लेखक।

नई पीढ़ी के कवि।

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