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भारतेंदु हरिश्चंद्र

1850 - 1885 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत। समादृत कवि, निबंधकार, अनुवादक और नाटककार।

भारतेंदु हरिश्चंद्र के दोहे

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लोक-लाज की गांठरी पहिले देइ डुबाय।

प्रेम-सरोवर पंथ में पाछें राखै पाय॥

प्रेम प्रेम सब ही कहत प्रेम जान्यौ कोय।

जो पै जानहि प्रेम तो मरै जगत क्यों रोय॥

सब दीननि की दीनता, सब पापिन को पाप।

सिमट आइ मों में रह्यो, यह मन समुझहु आप॥

प्रेम सकल श्रुति-सार है प्रेम सकल स्मृति-मूल।

प्रेम पुरान-प्रमाण है कोउ प्रेम के तूल॥

बिनु गुन जोबन रूप धन, बिनु स्वारथ हित जानि।

शुद्ध कामना तें रहित, प्रेम सकल रस-खानि॥

जिन पाँवन सो चलत तुम, लोक वेद की गैल।

सो पाँव या सर धरी, जल जै है मैल॥

प्रेम सरोवर नीर है, यह मत कीजो ख्याल।

परे रहें प्यासे मरे, उलटी ह्याँ की चाल॥

लोक लाज की गाँठरी, पहिले देइ डुबाय।

प्रेम सरोवर पंथ में, पाछें राखे पाय॥

जामैं रस कछु होत है, पढ़त ताहि सब कोय।

बात अनूठी चाहिए, भाषा कोऊ होय॥

प्रेम सकल श्रुतिसार है, प्रेम सकल स्मृति-मूल।

प्रेम पुरान प्रमाण है, कोउ प्रेम के तूल॥

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