संगीत पर संस्मरण
रस की सृष्टि करने वाली
सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
संगीतज्ञों के संस्मरण (भूमिका)
पंडित भास्कर बुआ भखले को भी संगीत प्रचार की बड़ी अभिलाषा थी और उन्होंने सन् 1911 ईस्वी में पूना में भारत गायन समाज नामक स्कूल खोला जिसमें स्वयं पंडित जी और पंडित अष्टेकर विद्यार्थियों को सिखाते थे। पंडित जी का स्वर्गवास होने के बाद भी इनके शिष्यों न स्कूल