काल के अहाते के बीचों-बीच सीधी लकीर-सी खिंची पगडंडी पकड़कर जनपद के अधिवासी चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं। कोमल दल किसलय हैं तो फल-फूल के यौवन-भार से लदी लता-वल्लरियाँ भी हैं। अरण्य के अलमस्त साखी हैं तो उफनाती दरिया के तटवर्ती पेड़ भी हैं। ये नन्हे-मुन्ने!
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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