तृष्णा पर दोहे

तृष्णा अप्राप्त की प्राप्ति

की तीव्र इच्छा का भाव है। एक प्रबल मनोभाव के रूप में विभिन्न विषय-प्रसंगों में तृष्णा का रूपक नैसर्गिक रूप से अभिव्यक्त होता रहा है। यहाँ इस चयन में तृष्णा, तृषा, प्यास, पिपासा, कामना की पूर्ति-अपूर्ति के संदर्भ रचती कविताओं का संकलन किया गया है।

तुका कुटुंब छोरे रे लड़के, जीरो सिर मुंडाय।

जब ते इच्छा नहिं मुई, तब तूँ किया काय॥

संत तुकाराम

ठौर ठौर मनरथ फिरत, कोऊ छूट्यो नाहिं।

मानस की कहिए कहा, पसु पंछिन हू माहिं॥

जान कवि

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