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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

यह आवश्यक नहीं है; अर्थात यह अनिवार्य नहीं है कि काव्य की वास्तविक रचना का क्षण, युगपत-रूप से हृदय के द्रवण का, चित्त की रसात्मकता का भी क्षण हो।