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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जीवन संघर्ष की अधिकता के फलस्वरूप अंतर्मुखता और भाव-सघनता तो होती ही है, किंतु उसके साथ, शिक्षा, स्वाध्याय और समय के अभाव के कारण, काव्य-सौंदर्य के विकास के प्रति विमुखता भी दृष्टिगोचर होती है।