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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

जब मर्मज्ञ कवि; अपनी विशिष्ट आंतरिक आग्रह-धारा के द्वारा किन्हीं विशिष्ट मर्मों को ही प्रकटीकरण के लिए उपस्थित करता है, तब उन मर्म-तत्त्वों की अभिव्यक्ति के सिलसिले में ऐसे सेंसर्स का विकास करता है कि जो सेंसर्स उन तत्त्वों के अनुपयुक्त शब्द-संयोगों और कल्पना-चित्रों को रास्ते से हटा देते है।