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अवनींद्रनाथ ठाकुर के उद्धरण

एक शिल्पी की अपेक्षा संसार में एक कारीगर की ही वाहवाह अधिक होती है, क्योंकि एक कारीगर वाहवाही पाकर ही कुछ गढ़ता है, और एक शिल्पी गढ़ता चलता है अपने काम के साथ, अपने को खिलता हुआ महसूस करते-करते।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी