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अवनींद्रनाथ ठाकुर के उद्धरण

एक शिल्पी जिसे छू लेता है, वही सोना हो जाता है। हालाँकि बेचारा किसी भी दिन अपने बाल-बच्चों के शरीर को उस सोने से कभी लाद नहीं पाता।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी