Font by Mehr Nastaliq Web

अवनींद्रनाथ ठाकुर के उद्धरण

एक शिल्पी कितनी बड़ी कल्पना लेकर यथार्थ जगत् से परे हटकर खड़ा हो गया जब उसने निरे पत्थर, काठ और काग़ज़ से कथा कहलानी चाही।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी