केदारनाथ सिंह के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

केदारनाथ सिंह के 10

प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ उद्धरण

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क़ब्रिस्तान वह जगह है, जहाँ सारी पंचायतें ख़त्म हो जाती हैं।

केदारनाथ सिंह

मैं चाहूँ या चाहूँ, अपने समाज में अपने सारे मानववाद के बावजूद, मैं एक जाति-विशेष का सदस्य माना जाता हूँ। यह मेरी सामाजिक संरचना की एक ऐसी सीमा है, जिससे मेरे रचनाकार की संवेदना बार-बार टकराती है और क्षत-विक्षत होती है।

केदारनाथ सिंह

निस्संदेह एक श्रेष्ठ मौलिक कवि की शक्ति की पहचान आगे चलकर इसी बात से की जाएगी कि वह अपने समय की रचना के सामूहिक व्यक्तित्व से किस हद तक अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में समर्थ हो सका है।

केदारनाथ सिंह

मेरा टेलीविज़न लगभग प्रलाप जैसी भाषा में जो लगातार बोलता रहता है, एक ख़ास तरह का प्रदूषण मेरी भाषा की दुनिया में—उसके ज़रिए भी फैलता है।

केदारनाथ सिंह

कई बार एक आलोचक जो कहता है, उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण वह होता है जो वह नहीं कहता।

केदारनाथ सिंह

साहित्यिक आदान-प्रदान की दुनिया में कोई भी प्रभाव आकस्मिक नहीं होता।

केदारनाथ सिंह

मेरी आधुनिकता में मेरे गाँव और शहर के बीच का संबंध किस तरह घटित होता है, इस प्रश्न की विकलता मेरे भाव-बोध का एक अनिवार्य हिस्सा है।

केदारनाथ सिंह

बहैसियत एक रचनाकार के मेरे लिए आधुनिकता सबसे पहले मेरा अनुभव है।

केदारनाथ सिंह

मेरी आधुनिकता की एक चिंता यह है कि उसमें लालमोहर कहाँ है? मेरी बस्ती के आख़िरी छोर पर रहने वाला लालमोहर वह जीती-जागती सचाई है, जिसकी नीरंध्र निरक्षरता और अज्ञान के आगे मुझे अपनी अर्जित आधुनिकता कई बार विडंबनापूर्ण लगने लगती है।

केदारनाथ सिंह

आज के कवि का ‘मैं’ एकवचन प्रथम पुरुष का ‘मैं’ होकर ‘हम’ की तरह अमूर्त और व्यापक हो गया है, और ऐसा किसी बड़े आदर्श के प्रति आग्रह के कारण नहीं, बल्कि अमानवीकरण की एक बृहत्तर प्रक्रिया के अंतर्गत अपने आप और बहुत कुछ कवि के अंजान में ही हो गया है।

केदारनाथ सिंह

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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