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वृंद

1643 - 1735 | जोधपुर, राजस्थान

रीतिकालीन नीतिकवि। सूक्तिकार के रूप में स्मरणीय।

रीतिकालीन नीतिकवि। सूक्तिकार के रूप में स्मरणीय।

वृंद की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 52

कहुँ अवगुन सोइ होत गुन कहुँ गुन अवगुन होत।

कुच कठोर त्यौं हैं भले कोमल बुरे उदोत॥

भावार्थ: कवि कहते हैं कि स्थिति के आधार पर जो कहीं पर अवगुण होता है, वह गुण बन जाता है और कहीं पर जो गुण माना जाता है, वह अवगुण हो जाता है। गुण−अवगुण का निर्धारण रुचि और स्थिति पर ही निर्भर करता है। जिस प्रकार कुचों की कठोरता को अच्छा माना गया है और उनकी कोमलता को बुरा माना गया है। वैसे सामान्य स्थिति में कठोरता को अवगुण और कोमलता को गुण के रूप में अच्छा माना जाता है।

दुष्ट छांड़ै दुष्टता पोखै राखै ओट।

सरपहि केतौ हित करौ चुपै चलावै चोट॥

भावार्थ: वृन्द कवि कहते हैं कि दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ता है, उसे कितना भी पाला और पोसा जाए लेकिन वह अपने स्वभावगत दुष्टता और अवगुण को किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ता है। जिस प्रकार साँप का कितना ही हित क्यों किया जाए लेकिन दब जाने पर वह काटेगा ही, क्योंकि वह स्वभाव के वशीभूत हो जाता है।

एकहि गुन ऐसौ भलौ जिहिँ अवगुन छिप जात।

नीरद के ज्यौं रंग बद बरसत ही मिट जात॥

भावार्थ: कवि कहता है कि व्यक्ति में एक ही ऐसा गुण होना चाहिए जिससे उसके व्यक्तित्व में समाए अनेक अवगुण छिप जाते हैं, अर्थात् उस विशिष्ट गुण के कारण उसके अन्य अवगुण प्रभावहीन हो जाते हैं। जिस प्रकार बादल के काले−धूमिल धब्बे उसके बरसने के बाद स्वयं ही मिट जाते हैं।

धन संच्यौ किहिं काम कौ खाउ खरच हरि प्रीति।

बँध्यो गँधीलौ कूप जल कढ़ै बढ़ै इहिँ रीति॥

भावार्थ: कवि वृंद कहते हैं कि उस धन का संचय करना नितांत व्यर्थ होता है, जिस धन का उपयोग खाने में, ख़र्च करने में, भगवद्भक्ति करने में और परोपकार करने में किया जाए, तो ऐसे धन को संचय करने से कोई लाभ नहीं होता है। जैसे कुएँ में भरा हुआ जल यदि निकाला जाए तो वह गंदा ही हो जाएगा और यदि वह जल कुएँ से निकलता रहेगा तो बढ़ता ही रहेगा।

मधुर बचन तैं जात मिट उत्तम जन अभिमान।

तनिक सीत जल सौं मिटै जैसे दूध उफान॥

भावार्थ: कवि कहते हैं कि मधुर वाणी के प्रभाव से बड़े−बड़ों का अभिमान भी मिट जाता है जिस प्रकार थोड़े से ठंडे पानी के छींटे देने से उबलता हुआ दूध भी शांत हो जाता है। अर्थात् दुष्ट व्यक्ति के घमंड को मधुर वाणी से ही मिटाया जा सकता है, उससे लड़ने−झगड़ने से नहीं।

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