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तेजी ग्रोवर

1955 | पठानकोट, पंजाब

सुपरिचित कवयित्री-कथाकार और अनुवादक। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।

सुपरिचित कवयित्री-कथाकार और अनुवादक। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।

तेजी ग्रोवर का परिचय

तेजी ग्रोवर क जन्म पंजाब के पठानकोट में 7 मार्च 1955 को हुआ। अँग्रेज़ी साहित्य में उच्च शिक्षा के बाद वह प्राध्यापन से संबद्ध हुईं और सामाजिक सरोकारों-विमर्शों के विभिन्न कार्यक्रमों और आंदोलनों में सक्रिय रही हैं।   

समीक्षकों के अनुसार सूक्ष्म और सघन ऐंद्रिकता उनकी कविताओं का विशेष गुण है जो उनके अनोखे जगत को आत्मीय और इंद्रिय-साध्य बनाता है और उनके रचना-संसार को कला-साध्य बनाता है। उनकी कविताओं को सार्वजनिकता, सामाजिकता, व्यापकता और विचारधारा के भीषण कोलाहल के बीच निजता के सुखद संपन्न मौन के लिए अवकाश रचती कविताएँ कहा गया है।   

‘यहाँ कुछ अँधेरी और तीखी है नदी’ (1983), ‘लो कहा सांबरी’ (1994), ‘अंत की कुछ और कविताएँ’ (2000), ‘मैत्री’ (2008) उनके कविता-संग्रह है। उनका नया संग्रह ‘दर्पण अभी काँच ही था’ 2019 में प्रकाशित हुआ है। ‘जैसे परंपरा सजाते हुए’ (1982) और ‘तेजी और रुस्तम की कविताएँ’ (2009) साझा संकलन में भी उनकी कविताएँ प्रकाशित हैं।  इसके अतिरिक्त, उनका एक उपन्यास ‘नीला’ (1999) और एक कहानी संग्रह ‘सपने में प्रेम की सात कहानियाँ’ (2009) भी प्रकाशित हैं। ‘नीला घर और दूसरी यात्राएँ’ (2016) में उनके लेखों, संस्मरणों और यात्रा-वृत्तांतों का संग्रह है और ‘अकम से पुरम तक: लोक कथाओं का घर और बाहर’ (2017) लोक कथाओं पर लेखों का संग्रह है।  

हिंदी में तेजी ग्रोवर की प्रतिष्ठा एक सुपरिचित अनुवादक की भी रही है।  वह नॉर्वे के कई उपन्यासों को पहली बार हिंदी में लेकर आई हैं और दो दर्जन से अधिक स्वीडिश कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया है। उन्होंने बाल-साहित्य की पाँच किताबों का संपादन भी किया है। स्वयं उनकी कृतियों का देश-विदेश की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। वह चित्रकारी भी करती हैं और उनकी पेंटिंग्स की कुछ प्रदर्शनियाँ आयोजित हुई हैं।  

वह भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, रज़ा अवार्ड, वरिष्ठ कलाकारों हेतु राष्ट्रीय सांस्कृतिक फ़ेलोशिप आदि से पुरस्कृत की गई हैं।

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