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सोमप्रभ सूरि

समय : 13वीं सदी। जैनाचार्य। गद्य-पद्यमय संस्कृत-प्राकृत काव्य ‘कुमारपाल प्रतिबोध’ के रचयिता।

समय : 13वीं सदी। जैनाचार्य। गद्य-पद्यमय संस्कृत-प्राकृत काव्य ‘कुमारपाल प्रतिबोध’ के रचयिता।

सोमप्रभ सूरि के दोहे

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माणि पणट्ठइ जइ तणु, तो देसडा चइज्ज।

मा दुज्जन-कर-पल्लविहिँ, दंसिज्जंतु भमिज्ज॥

वेस विसिट्ठह वारिअइ, जइ वि मणोहर-गत्त।

गंगाजल-पक्खालिअवि, सुणिहि कि होइ पवित्त॥

रिद्धि विहूणइ माणुसह कुणइ कुवि संमाणु।

सउणिहि मुच्चउ फल रहिउ तरुवरु इत्थु पमाणु॥

चूडउ चुन्नी होइसइ मुद्धि कवोलि निहत्तु।

सासानलिण झलक्कियउं वाह-सलि-संसित्तु॥

पिउ हउं थक्किय सयलु दिणु तुह विरहरग्गि किलंत।

थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत॥

अम्हे थोड़ा रिउ बहुअ इउ कायर चिंतंति।

मुद्धि निहालहि गयणयलु कइ उज्जोउ करंति॥

हियडा संकुडि मिरिय जिम, इंदिय-पसरु निवारि।

जित्तिउ पुज्जइ पंगुरणु तित्तिउ पाउ पसारि॥

मरगय वन्नह पियह उरि पिय चंपय-पह देह।

कसबट्टइ दिन्निय सहइ नाइ सुवन्नह रेह॥

मइँ जाणिउं पिय विरहियह, कवि धर होइ वियालि।

णवर मयंकु वि तिह तवइ जिह दिणयरु खयकालि॥

निम्मल-मुत्तिअ-हार मिसि, रइय चाउक्कि पहिट्ठ।

पढमु पविट्ठहु हिय तसु, पच्छा भवणि पविट्ठ॥

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aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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