सोमप्रभ सूरि के दोहे
माणि पणट्ठइ जइ न तणु, तो देसडा चइज्ज।
मा दुज्जन-कर-पल्लविहिँ, दंसिज्जंतु भमिज्ज॥
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वेस विसिट्ठह वारिअइ, जइ वि मणोहर-गत्त।
गंगाजल-पक्खालिअवि, सुणिहि कि होइ पवित्त॥
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रिद्धि विहूणइ माणुसह न कुणइ कुवि संमाणु।
सउणिहि मुच्चउ फल रहिउ तरुवरु इत्थु पमाणु॥
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चूडउ चुन्नी होइसइ मुद्धि कवोलि निहत्तु।
सासानलिण झलक्कियउं वाह-सलि-संसित्तु॥
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पिउ हउं थक्किय सयलु दिणु तुह विरहरग्गि किलंत।
थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत॥
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अम्हे थोड़ा रिउ बहुअ इउ कायर चिंतंति।
मुद्धि निहालहि गयणयलु कइ उज्जोउ करंति॥
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हियडा संकुडि मिरिय जिम, इंदिय-पसरु निवारि।
जित्तिउ पुज्जइ पंगुरणु तित्तिउ पाउ पसारि॥
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मरगय वन्नह पियह उरि पिय चंपय-पह देह।
कसबट्टइ दिन्निय सहइ नाइ सुवन्नह रेह॥
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मइँ जाणिउं पिय विरहियह, कवि धर होइ वियालि।
णवर मयंकु वि तिह तवइ जिह दिणयरु खयकालि॥
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निम्मल-मुत्तिअ-हार मिसि, रइय चाउक्कि पहिट्ठ।
पढमु पविट्ठहु हिय तसु, पच्छा भवणि पविट्ठ॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere