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शरद जोशी

1931 - 1991 | उज्जैन, मध्य प्रदेश

समादृत लेखक और व्यंग्यकार।

समादृत लेखक और व्यंग्यकार।

शरद जोशी के उद्धरण

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अक्सर हिंदी का ईमानदार लेखक भ्रम और उत्तेजना के बीच की ज़िंदगी जीता है।

यहाँ (हिंदी में) केवल आरोप लगते हैं और निर्णय दिए जाते हैं। बल्कि आरोप ही अंतिम निर्णय होते हैं।

(हिंदी में) ‘आत्मकथ्य’ केवल एक शब्द भर है। यहाँ आत्मा को शक से देखा जाता है और कथ्य पर कोई भरोसा नहीं करता।

सँकरे रास्ते और तंगदिल लोगों के आक्रामक समूहों से जूझते हुए चलने का प्रयत्न करना, साहित्य में जीना है।

मैं अपने फ़ुटपाथों पर चला हूँ। मैं उसकी स्थिति बदलने के लिए भी कुछ नहीं करूँगा, क्योंकि मुझसे बेहतर प्रज्ञा के सजग, सचेत, समझदार और कमिटेड क़िस्म के लोग उसे दरबार में ले जाने लगे हैं। मैं उनसे पराजित हूँ।

लिखना पूर्वजन्म का कोई दंड झेलना है। इसे निरंतर झेले बिना इससे मुक्ति नहीं। मैं झेल रहा हूँ। पर मुझसे कहा जाए कि इस जन्म में भी आप पाप कर रहे हैं, तो यह मुझे स्वीकार नहीं।

हिंदी में लिखने का अर्थ निरंतर प्रहारों से सिर बचाना है, बेशर्मी से।

मैं हिंदी साहित्य की दुनिया का नागरिक क़तई नहीं हूँ। उसे उन्हीं चरणों में पड़ी रहने दो, जहाँ वह पड़ी है। वही शायद उसका लक्ष्य था। दरबारों से निकली और दरबारों में घुस गई।

साहित्य में या महज़ जीवन जीने के लिए आप कुछ कीजिए, वे निगाहें आपको लगातार एहसास देंगी कि आप ग़लत हैं, घोर स्वार्थी हैं, हल्के हैं आदि।

मेरा क़सूर यह है कि लोग मुझे पढ़ते हैं।

हिंदी में लेखक होने का अर्थ है, निरंतर उन जगहों द्वारा घूरे जाना, जो आपको अपराधी समझती हैं।

हिंदी में लेखक का आस-पास बहुत भयावना और निर्मम होता है। वह हमला भी करे, उसे बचाव की लड़ाई लड़नी ही पड़ती है।

हिंदी में पठनीय साहित्य, साहित्य नहीं होता। वह कुछ भ्रष्ट और सतही-सी चीज़ होता है।

हिंदी में लोकप्रिय होना अपराध है। मैं पुराना अपराधी हूँ।

लेखक के रूप में आप यात्री बनें, तो यह तैयारी मन में कर लेते हैं कि यात्रा कठिन होगी, मंज़िल अनिश्चित और अनजानी है, सुख केवल चलने और चलते रहने भर का है।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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