Sarveshwar Dayal Saxena's Photo'

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

1927 - 1983 | बस्ती, उत्तर प्रदेश

आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि और नाटककार। अपनी पत्रकारिता के लिए भी प्रसिद्ध। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि और नाटककार। अपनी पत्रकारिता के लिए भी प्रसिद्ध। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का परिचय

मूल नाम : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

जन्म : 15/09/1927 | बस्ती, उत्तर प्रदेश

निधन : 24/09/1983 | नई दिल्ली, दिल्ली

आधुनिक कविता के समादृत कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर 1927 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा काशी और इलाहबाद में पूरी हुई। अध्यापन और सरकारी कार्यालय में नौकरी के बाद आकाशवाणी में कार्य किया, फिर अज्ञेय के आमंत्रण पर ‘दिनमान’ अख़बार से जुड़ गए। कुछ समय बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक भी रहे। 

उनके काव्य-लेखन की सक्रियता 1951 से शुरू हुई। ‘परिमल गोष्ठी’ में उनकी चर्चा बढ़ी और उनमें नई कविता की पर्याप्त संभावनाएँ देखी गई। उनका पहला कविता-संग्रह ‘काठ की घंटियाँ’ 1959 में प्रकाशित हुआ। उसी वर्ष ‘तीसरा सप्तक’ में उनकी कविताएँ शामिल की गई।

उनके कवित्व के विकास में भारतीय ग्राम्य जीवन की संवेदना और समाजवादी विचारधारा दो प्रमुख तत्व रहे। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविताओं के ठिकाने बताते हुए प्रयाग शुक्ल लिखते हैं—‘‘एक ठिकाना तो वह गाँव रहा जहाँ वे जन्मे और बड़े हुए, दूसरा परिवार, तीसरा मित्र-वर्ग, चौथा वह वृहत्तर समुदाय जिसका मानो स्वयं अपना कोई ठौर-ठिकाना नहीं—यानी सताए हुए लोग। पाँचवीं—प्रकृति की वह बहुत बड़ी दुनिया, जिसमें वह जीवन-मर्मों को पाने की एक आकुल चेष्टा करते थे और उस पर यह गहरा भरोसा भी कि जब सब साथ छोड़ देंगे तो कोई चिड़िया, टहनी, बारिश की कोई बूँद, घास—व्यथा-कथा सुनने से इंकार नहीं करेगी, बल्कि एक अनुकंपा की तरह साथ रहेगी।’’  

उन्होंने कविताओं के अलावे नाटक, उपन्यास, यात्रा-संस्मरण, बाल-साहित्य में योगदान किया है। पत्रकार के रूप में उनकी ख़ास पहचान दिनमान में प्रकाशित उनके ‘चरचे और चरख़े’ स्तंभ के लिए है, साथ ही उन्होंने समसामयिक मुद्दों पर संवेदनशील टिप्पणियाँ भी की। उन्होंने रंगमंच, नृत्य और संस्कृति पर समीक्षात्मक लेख लिखे।   

कविता-संग्रह : काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग, क्या कह कर पुकारूँ, कोई मेरे साथ चले

संपादन : शमशेर (मलयज के साथ), रूपांबरा (सहायक संपादन, संपादक : अज्ञेय), अँधेरों का हिसाब, नेपाली कविताएँ, रक्तबीज

बाल साहित्य : बतूता का जूता, महँगू की टाई, भों-भों खों-खों, लाख की नाक 

उपन्यास : सूने चौखटे

लघु उपन्यास : पागल कुत्तों का मसीहा, सोया हुआ जल

नाटक : बकरी, लड़ाई, अब ग़रीबी हटाओ, कल भात आएगा, हवालात

यात्रा-संस्मरण :  कुछ रंग कुछ गंध 

कविता-संग्रह ‘खूँटियों पर टँगे लोग’ के लिए उन्हें 1983 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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