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रज्जब

1567 - 1689 | साँगानेर, राजस्थान

भक्तिकाल के संत कवि। विवाह के दिन संसार से विरक्त हो दादूदयाल से दीक्षा ली। राम-रहीम और केशव-करीम की एकता के गायक।

भक्तिकाल के संत कवि। विवाह के दिन संसार से विरक्त हो दादूदयाल से दीक्षा ली। राम-रहीम और केशव-करीम की एकता के गायक।

रज्जब का परिचय

मूल नाम : रज्जब

जन्म :साँगानेर, राजस्थान

निधन : साँगानेर, राजस्थान

संत रज्जब का पूरा नाम रज्जब अली खाँ था। सांगानेर (राजस्थान) के पठान वंश में आपका जन्म सन् 1567 में हुआ था। पिता जयपुर राज्य की सेवा में एक प्रतिष्ठित पद पर थे, अतः सैनिक शिक्षा के साथ पढ़ने और लिखने की भी शिक्षा मिली। किंवदंती यह भी है कि रज्जब का जन्म मद्य बेचने और निकालने वाली कलाल जाति के यहाँ हुआ था। रज्ज ब मुसलमान थे। पठान थे। किसी युवती के प्रेम में थे। विवाह का दिन आ गया। बारात सजी। बारात चली। रज्ज ब घोड़े पर सवार। मौर बाँधा हुआ सिर पर। बाराती साथ है, बैंडबाजा है, फूलों की मालाएँ हैं और अपनी ससुराल के करीब पहुँचने को ही थे। दस पाँच कदम शेष‍ रह गये थे। ससुराल के लोग स्वागत के लिए तैयार थे—और यह घटना घटी कि अचानक घोड़े के पास एक फ़कीर आया। बारात के सामने आ कर खड़ा हो गया और उसने गौर से रज्जब को देखा। आँख से आँख मिली। वह आदमी रज्जब का होने वाला गुरु था—दादूदयाल। दादूदयाल ने भर आँख रज्जब की तरफ देखा, आँख मिली ओर दादू ने कहा—

‘रज्जब तैं ग़जब कियो, सिर पर बांध्यो मोर।
आया था हरि भजन को, कियो नरक में ठौर।’

रज्जब घोड़े से नीचे कूद पड़ा, मौर उतार कर फेंक दिया, दादू के पैर पकड़ लिए और कहा कि समय पर चेता दिया। कहते हैं रज्जब ने उसी समय से संन्यास ले लिया और आजीवन दुल्हे के वेश में दादू के यहाँ रहे। दादूदयाल पर इनकी अन्यतम श्रद्धा थी। छाया की तरह दादू दयाल के साथ रहे रज्जब। उनकी सेवा में लगे रहे। गुरु के प्रति अद्भुत प्रेम था रज्जब का। जब दादूदयाल ने शरीर छोड़ा, तो रज्जब ने आँख बंद कर लीं। तो फिर कभी आँख नहीं खोली। लोग कहते कि आँखें क्यों नहीं खोलते, तो वे कहते कि देखने योग्य जो था उसे देख लिया, अब देखने को क्या है? दादूदयाल के मरने के बाद वर्षों तक रज्जब जिंदा रहे, लेकिन कभी आँखें नहीं खोलीं। ये शरीर से अत्यंत हृष्ट-पुष्ट और सुंदर व्यक्ति थे। इनकी मृत्यु सन् 1689 में 122 वर्ष की अवस्था में हुई। इनके चलाए हुए पंथ का नाम 'रजबावत' है और सांगानेर (जयपुर) में इनकी गद्दी है।

संत समागम, गुरुकृपा और आत्मानुभूति के कारण रज्जब बीस वर्ष की अवस्था से ही रचना करने लगे थे। विविध छंदों में गुरुमहिमा, निर्गण ब्रह्म की जटिल प्रतीति, नामसाधना आदि इनके काव्य के प्रमुख विषय हैं जिनको रज्जब ने अभिव्यक्ति दी है। स्वानुभूति का कथन और संतों की रचनाओं का संकलन दोनों का प्रमाण इनके ग्रंथों में है। इनके प्रसिद्ध तीन ग्रंथों 'अंगवधू', 'सब्बंगी' और 'वाणी' में अन्य संतों की वाणियों का भी संग्रह है। 'अंगवधू' दादूदयाल की रचनाओं का संग्रह है।

‘सब्बंगी’ में रज्जब ने दादू की वाणियों को संरक्षित तो किया ही, अपने पूर्ववर्ती संतों की वाणियों का संरक्षण भी किया। इन्होंने संपूर्ण संत-साहित्य को रागों और अंगों में विभाजित किया। विभिन्न अंगों में संबंधित विषय की साखियों का संकलन किया गया। रज्जब ने यह काम तब किया जब अपने ही लिखे संरक्षण की बात बहुत मुश्किल थी। यह अपने समय का बहुत बड़ा काम था। ‘सब्बंगी’ में एक सौ सैंतीस कवि संकलित हैं। एक ओर इस संग्रह में कबीर, रैदास जैसे पूर्वी बोली के संत हैं तो दूसरी ओर दादू, स्वयं रज्जब, बखना, ग़रीबदास और पीपा जैसे राजस्थानी बोलियों के संत हैं। नानक, अंगद, अमरदास पंजाबी भाषा-भाषी हैं तो ज्ञानदेव और नामदेव जैसे मराठी मूल के कवि भी इस संग्रह में हैं। अवधी और ब्रजभाषा में लिखने वाले संतों की बहुत बड़ी संख्या इस संग्रह में है। संस्कृत के महान आचार्यों यथा शंकराचार्य, भर्तृहरि, व्यास और रामानंद को भी इस संग्रह में स्थान मिला है। इस संग्रह के कवि विभिन्न धर्म एवं संप्रदायों के हैं।

इन्होंने स्वयं साखी, पद, सवैया, अरिल्ल, छप्पय आदि विविध छंदों में रचनाएँ की हैं। इनकी उपलब्ध वाणियों को 'रज्जब वाणी' शीर्षक से डॉ. बृजलाल वर्मा ने संपादित करवाया। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इनकी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि–“रज्जब दास निश्चय ही दादू के शिष्यों में सबसे अधिक कवित्व लेकर उत्पन्न हुए थे। उनकी कविताएँ भाव-संपन्न, साफ़ और सहज हैं। भाषा पर राजस्थानी प्रभाव अधिक है और इस्लामी साधना के शब्द भी अपेक्षाकृत अधिक हैं।”

भाषा इनकी राजस्थानी है। संस्कृत का भी इन्हें ज्ञान था। रचनाएँ सरस हैं लेकिन कुछ साखियाँ अत्यंत गूढ़ हैं, जिनका अर्थ लगाना सहज नहीं। इनकी बानियाँ ऊँचे परमार्थ और गहरे अनुभव में रँगी हुई हैं। विरह और प्रेम के पद अत्यंत सरस हैं, जिनमें सूफ़ियों की ऊँची मस्ती तथा भक्तों की गहरी भावना दोनों एक साथ दिखती हैं।

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