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फूलीबाई

1568 - 1646 | नागौर, राजस्थान

राजस्थान के किसान परिवार में जन्म। आडंबरहीन, सरल व सीधी भाषा में ज्ञान मार्ग के गूढ़ तथ्यों को जनमानस के सामने रखा जिससे साधारण व बिना पढ़ा व्यक्ति भी मुक्ति का मार्ग अपना सके।

राजस्थान के किसान परिवार में जन्म। आडंबरहीन, सरल व सीधी भाषा में ज्ञान मार्ग के गूढ़ तथ्यों को जनमानस के सामने रखा जिससे साधारण व बिना पढ़ा व्यक्ति भी मुक्ति का मार्ग अपना सके।

फूलीबाई के दोहे

क्या गंगा क्या गोमती, बदरी गया पिराग।

सतगुर में सब ही आया, रहे चरण लिव लाग॥

जब लग स्वांस सरीर में, तब लग नांव अनेक।

घट फूटै सायर मिलै, जब फूली पूरण एक॥

गैंणा गांठा तन की सोभा, काया काचो भांडो।

फूली कै थे कुती होसो, रांम भजो हे रांडों॥

कामी कंथ के कारणै, कै करीये सिणगार।

पत को पत रीझायलो, फूली को भरतार॥

जानी आये गोरवें, फूली कीयो विचार।

सब संतन को बालमो, सो मेरो भरतार॥

माटी सूं ही ऊपज्यो, फिर माटी में मिल जाय।

फूली कहै राजा सुणो, करल्यो कोय उपाय॥

फूली सतगुर उपरै, वारूं मेरो जीव।

ग्यांनी गुर पूरा मिल्या, तुरत मिलाया पीव॥

क्या इंद्र क्या राजवी, क्या सूकर क्या स्वांन।

फूली तीनु लोक में, कामी एक समान॥

ऊंचो नीछो कहा करे, निहचल कर लै मन्न।

झुग्गो सिर की पागड़ी, माटी मिलसी तन्न॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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