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हरीराम व्यास

1510 - 1632 | ओरछा, मध्य प्रदेश

हरिवंश के शिष्य और राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित। ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के साथ ही तत्त्व-निरूपण के लिए स्मरणीय।

हरिवंश के शिष्य और राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित। ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के साथ ही तत्त्व-निरूपण के लिए स्मरणीय।

हरीराम व्यास के दोहे

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‘व्यास’ कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।

रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥

‘व्यास’ बचन मीठे कहै, खरबूजा की भाँति।

ऊपर देखौ एक सौ, भीतर तीन्यों पाँति॥

मुख मीठी बातें कहै, हिरदै निपट कठोर।

व्यास कहौं क्यों पाय हैं, नागर नंदकिसोर॥

‘व्यास’ मिठाई विप्र की, तामे लागै आगि।

बृंदाबन ते स्वपच की, जूठहि खैए माँगि॥

‘व्यास’ बड़ाई लोक की, कूकर की पहिचानि।

प्रीति करै मुख चाटही, बैर करै तनु-हानि॥

बृंदावन के स्वपच कौ, सेवक होय।

तासों भेद कीजिए, पीजै पद-रज धोय॥

श्रीहरि-भक्ति जानहीं, माया ही सों हेत।

जीवन ह्वैहै पातकी, मरि कै ह्वैहै प्रेत॥

मेरे मन आधार प्रभु, श्रीवृंदावन-चंद।

नितप्रति यह सुमरत रहौं, ‘व्यासहिं’ मन आनंद॥

हरि हीरा गुरु जौहरी, ‘व्यासहिं’ दियौ बताय।

तन मन आनंद सुख मिलै, नाम लेत दुख जाय॥

सती सूरमा संतजन, इन समान नहिं और।

अगम पंथ पै पग धरैं, डिगै पावै ठौर॥

‘व्यास’ स्वपच बहु तरि गए, एक नाम लवलीन।

चढ़े नाव अभिमान की, बूड़े कोटि कुलीन॥

मुख मीठी बातैं कहै, हिरदै निपट कठोर।

‘व्यास’ कहौ क्यों पाय है, नागर नंदकिसोर॥

‘व्यास’ बड़ाई जगत की, कूकर की पहिचानि।

प्यार करे मुख चाटई, बैर करे तन हानि॥

साकत सगो भेटिये, इंद्र कुबेर समान।

सुंदर गनिका गुन भरी, परसत तनु की हान॥

नारि नागिनी बाघनी, ना कीजै विश्वास।

जो वाकी संगत करै, अंत जु होय बिनास॥

‘व्यास’ पराई कामिनी, कारी नागिन जान।

सूँघत ही मर जायगो, गरुड़ मंत्र नहिं मान॥

साकत-बामन जिन मिलौ, वैष्णव मिलि चंडाल।

जाहि मिलै सुख पाइये, मनो मिले गोपाल॥

‘व्यास’ दीनता पारसै, नहिं जानत जग अंध।

दीन भये तैं मिलत है, दीनबंधु से बंध॥

‘व्यास’ कथनी काम की, करनी है इकसार।

भक्ति बिना पंडित वृथा, ज्यों खर चंदन भार॥

‘व्यास’ कुलीननि कोटि मिलि, पंडित लाख पचीस।

स्वपच भक्त की पानहीं, तुलै तिनके सीस॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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