ध्रुव शुक्ल के बेला
प्रत्यक्ष पृथ्वी की चाहना
जाते-जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा और कुछ भी नहीं में सब कुछ होना बचा रहेगा विनोद कुमार शुक्ल की यह कविता पंक्तियाँ मुझे दैविक, दैहिक और गहरे आध्यात्मिक ताप की आँच में तपने
1953 | सागर, मध्य प्रदेश
हिंदी के सुपरिचित कवि-कथाकार।
हिंदी के सुपरिचित कवि-कथाकार।