Balkrishna Sharma Naveen's Photo'

बालकृष्ण शर्मा नवीन

1897 - 1960 | शाजापुर, मध्य प्रदेश

द्विवेदीयुगीन कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी। पद्मभूषण से सम्मानित।

द्विवेदीयुगीन कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी। पद्मभूषण से सम्मानित।

बालकृष्ण शर्मा नवीन का परिचय

उपनाम : 'नवीन'

मूल नाम : बालकृष्ण शर्मा

जन्म : 08/12/1897 | शाजापुर, मध्य प्रदेश

निधन : 29/04/1960 | कानपुर, उत्तर प्रदेश

द्विवेदी युग के समादृत कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन का जन्म 8 दिसम्बर 1897 को ग्वालियर राज्य के भयाना नामक ग्राम में हुआ था। 1917 में स्कूली शिक्षा पूरी कर गणेशशंकर विद्यार्थी के कानपुर आश्रम में रहकर कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे तभी 1920 में गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन के आह्वान पर पढ़ाई छोड़ देश की व्यावहारिक राजनीति में शामिल हो गए और फिर जीवनपर्यंत राजनीति से उनका नाता बना रहा। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य, संसद सदस्य और राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 

उनका लेखन-कर्म स्कूली दिनों से ही शुरू हो गया था लेकिन 1917 में गणेशशंकर विद्यार्थी के संपर्क में आने के बाद व्यवस्थित लेखन की शुरुआत हुई। इस दौरान उनकी संबद्धता गणेशशंकर विद्यार्थी द्वारा प्रकाशित ‘प्रताप’ पत्र से हो गई थी। वर्ष 1921-23 के दौरान वह ‘प्रभा’ पत्रिका के संपादक रहे और गणेशशंकर विद्यार्थी की मृत्यु के पश्चात 1931 में ‘प्रताप’ के प्रधान संपादक का उत्तरदायित्व सँभाला। इन पत्र-पत्रिकाओं में अभिव्यक्त उनकी संपादकीय टिप्पणियों को उनकी निर्भीकता और मुखरता के लिए सराहा गया। वह एक ओजस्वी वक्ता भी थे। 

राजनीति और पत्रकारिता करते हुए भी मूल रूप से वह एक कवि थे जिन्होंने द्विवेदी युग के समापन और राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के उभार की संक्रमण बेला में अपना साहित्यिक योगदान दिया। उनकी कविताओं में उमंगपूर्ण और प्रेमिल अभिव्यक्तियों के साथ ही उद्दाम प्रणय-आवेग और प्रखर राष्ट्रीयता भावना के दर्शन होते हैं। ‘उर्मिला’ खंड-काव्य में उन्होंने चिर-उपेक्षिता उर्मिला के प्रति कवि-न्याय का प्रदर्शन किया है। संवेदना और शिल्प की समग्रता की दृष्टि से 'रश्मिरेखा' उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है। वह कविता में हालावाद के प्रवर्तक भी कहे जाते हैं। उनके द्वारा रचित ‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ’ सदृश कविताओं की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। एक गद्य-लेखक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा उनकी ओजपूर्ण और निर्भीक संपादकीय टिप्पणियों के लिए रही।  
‘कुंकुम’, ‘रश्मिरेखा’, ‘अपलक’ और ‘क्वासि’ उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं. ‘उर्मिला’ उनका प्रशंसित प्रबंध-काव्य है. उन्होंने ‘विनोबा स्तवन’ शीर्षक प्रशस्ति एवं उद्बोधन की भी रचना की।
साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1960 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया।
29 अप्रैल, 1960 को कानपुर में उनका निधन हो गया।

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