अकबरी लोटा
लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कमी नहीं थी। काशी के ठठेरी बाज़ार में मकान था। नीचे की दुकानों से एक सौ रुपए मासिक के क़रीब किराया उतर आता था। अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते थे, पर ढाई सौ रुपए तो एक साथ आँख सेंकने के लिए भी न मिलते थे।
इसलिए जब उनकी पत्नी ने