अमरु के उद्धरण

भौहें टेढ़ी करने पर भी दृष्टि और अधिक उत्सुक होकर उधर देखने लगती है, वाणी रुद्ध होने पर भी यह दग्ध मुख मुस्कराए बिना नहीं रहता, चित्त को कठोर करने पर भी शरीर पुलकित हो जाता है। भला उसकी दृष्टि के सामने मान का निर्वाह किस तरह होगा?
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हे सखी! ये पुरुष किसके सगे होते हैं? मैं जिसे 'काला' कहती थी, उसे वे 'काला' कहते थे। मैं कहती थी कि यह श्वेत है' तो वे कहते थे 'यह श्वेत है'। मैं कहती थी कि 'अब चलें' तो वे कहते थे 'चलो'। मैं कहती थी 'रहने दें' तो वे कहते थे 'अच्छा रहने दें'। इस प्रकार जो मेरे मन के पीछे-पीछे चला करते थे, वे ही अब पराए हो गए।
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