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आदिकाल

हिंदी साहित्य के इतिहास में अनुमानतः 993 ई. से 1293 ई. के बीच का समय आदिकाल माना गया है। इस युग के कई नामकरण हुए, लेकिन अपने समय की व्यापक पृष्ठभूमि का बोध ‘आदिकाल’ शीर्षक से पूर्णतः संप्रेषित होने के कारण हिंदी साहित्य के आरंभिक दौर के लगभग तीन सौ वर्षों का स्वीकृत नाम आदिकाल है।

सिद्ध कवि

समय : 10 वीं सदी। चर्पटीनाथ के शिष्य और बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि।

सिद्ध कवि। समय : 840 ई. के आस-पास। पौराणिक रूढ़ियों और उनमें फैले भ्रमों के विरुद्ध कविताई की।

वज्रयानी सिद्ध। तंत्रसाधक। जातिवाद के विरोधी और सहज साधना के प्रबल समर्थक। चौरासी सिद्धों में से एक।

मगध नरेश। विरूपा के शिष्य। तंत्र-साधक और वज्रयानी। चौरासी सिद्धों में महत्त्वपूर्ण नाम।

चौरासी सिद्धों में से एक। महामुद्रा और तंत्र के अधिकारी विद्वान। पाखंड और कर्मकांड के विरोधी।

समय : 8वीं सदी। राजा धर्मपाल के समकालीन और शबरपा के शिष्य। चौरासी सिद्धों में महत्त्वपूर्ण। जातिवाद और आडंबर के विरोधी।

समय : 11-12वीं सदी। वज्रयानी सिद्ध, तंत्रयोगी और चौरासी सिद्धों में समादृत कवि।

780

आदि कवि। जन्म : 780 ई. के आस-पास। सरहपा के शिष्य। माया-मोह के विरोधी और सहज जीवन के साधक।

वज्रयानी सिद्ध। हिंदी के प्रथम कवि। सरह, सरहपाद, शरहस्तपाद, सरोजवज्र जैसे नामों से भी चर्चित।

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