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नमस्कार

namaskar

खुशीराम वाशिष्ठ

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और अधिकखुशीराम वाशिष्ठ

    कुछ मेरे साथ हँसे खेले, कुछ मेरे संग रोए भी हैं

    कुछ ने पथ के काँटे बीने, कुछ ने काँटे बोए भी हैं

    कुछ ने घनघोर घटाओं में, बिजली बन तीव्र प्रकाश भरा

    कुछ ने व्यंग्यों की वर्षा से, रक्खा यह मन का घाव हरा

    पीड़ा के बिरवे को सींचा, उनको भी मेरा अमित प्यार!

    उन सबको मेरा नमस्कार!

    जो मुझसे दाना पाकर भी, जा बैठे औरों की डाली

    जो मेरे मन को जला-जला, ख़ुद रहे मनाते दीवाली

    निशि-निशि भर जलता रहा दीप, दीखी उषा की पर लाली

    आँगन-आँगन बरखा बरसी, रह गया मेघ पर खुद खाली

    छूँछे मेघों पर होता है, कब बिजली का यौवन निसार

    उन सबको मेरा नमस्कार!

    मैंने जब हाट उठाने की, कर ली है पूरी तैयारी

    जीवन की संध्या-वेला में, क्यों आए हो तुम व्यापारी

    कुछ भग्न आस कुछ विषम जलन, कुछ टूटे-से मन के सपने

    रह गए शेष झोली में, कहने भर को केवल अपने

    टूटे सपनों से क्या होगा, इस अल्हड़ यौवन का शृंगार?

    उन सबको मेरा नमस्कार!

    गीतों का जन्म नहीं होता, पीड़ा को भोगा जाता है

    कवि सहलाता नासूर मगर, जग कहता है कवि गाता है

    स्वागत, पीड़ा देने वालो, तुमने गीतों को रचवाया

    असहाय सृष्टि की आहों को, कवि से छंदों में बँधवाया

    घुट-घुट कर मरने वालों का, इससे बढ़कर क्या हो दुलार?

    उन सबको मेरा नमस्कार!

    घुट-घुट कर मरने की निस्बत, आवारा फिरना अच्छा है

    निश्चेष्ट साधना की निस्बत, डगमग पग धरना अच्छा है

    हमने जीवन-भर तिल-तिल जल, केवल इतना ही सीखा है

    यह सत्य बहुत कटु है लेकिन, यह व्यंग्य बड़ा ही तीखा है

    घायल मानवता को देगा, यह, किन्तु कभी राहत अपार

    उन सबको मेरा नमस्कार!

    दुनिया के आवारा लोगो, तुमसे जग-उपवन की बहार

    यायावर बन फिरने वालो, तुम पर मेरी श्रद्धा अपार

    तुम जीवन के जलते स्फुल्लिंग, तुम प्राणवंत तुम अति उदार

    कब अटके तुम प्रासादों में, कब राजमुकुट से तुम्हें प्यार

    कब घिसी लीक पर शीश पटक, तुमने जीवन को किया खार

    उन सबको मेरा नमस्कार!

    स्रोत :
    • पुस्तक : तीन पीढ़ियाँ साठ कविताएँ (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : बोधि प्रकाशन
    • प्रकाशन : खुशीराम वाशिष्ठ
    • संस्करण : 2024

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