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लॉकर में धान

laukar mein dhaan

अभिज्ञात

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लॉकर में धान

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    मैं दुनिया का सबसे अच्छा अन्न खाता हँ-भात।

    यह भात

    उस धान से बना है

    जो उसी मिट्टी से उपजा है

    जिससे मैं...

    इसलिए हो जाता है

    उसका स्वाद

    मेरी स्वाद तंत्रिकाओं से एकाकार

    आज़मगढ़ के सुदूर गाँव कम्हरियाँ में

    जब धान पकने लगते हैं

    उसके दाने मुझे पुकारने हैं

    यहाँ कोलकाता तक सुनाई पड़ती है उनकी आवाज़

    यहाँ तक कि उनकी फुसफुसाहट

    धान की बालियों की इठलाती खनखनाहट

    धान कटने से दो-चार दिन पहले

    मैं पहुँच जाता हूँ गाँव

    भरी दोपहर में बिछाकर सो जाता हूँ खेत के किनारे

    झुरझुर चलती हवा में

    बालियों का एक-दूसरे से लड़कर करना अठखेलियाँ

    करना एक-दूजे से लिपटकर नृत्य

    मुझे भाता है

    खेत से होकर आती धानगंधी हवा

    कर देती है मदहोश

    मैं लेता हूँ भरपूर नींद धान के सान्निध्य में

    और वह नींद भी पूरी करता हूँ

    जो महानगर की आपाधापी वाली ज़िंदगी में

    रोज़ थोड़ी बहुत बची रहती है किसी कोने-अँतरे में

    और जब कट जाते हैं धान

    और अधिया पर उठ जाते हैं

    आधे-तिहाई बोझे

    मैं दिल को समझता हूँ

    वे करने निकले हैं मेरा प्रतिनिधित्व

    वे जहाँ रहेंगे

    अपनी ख़ुशबू और

    अपने भात के अनूठे स्वाद से करेंगे

    खाने और बनाने वाले को तृप्त

    उनका संतोष मुझे मिलेगा पुरस्कार में

    थाली में पहुँचने से पहले ही

    मेरे घर-आँगन, पास-पड़ोस गाँव-जवार को

    महकाता है भात

    यह भात मेरी मिट्टी का जयगान है

    और ईश्वर का आशीर्वाद

    इसके लिए मैं वर्षा का ऋणी और सूर्य की किरणों का आभारी हूँ

    मैं हर कौर के साथ

    ऐसे तृप्त होता हूँ

    जैसे सदियों का भूखा हूँ

    मुझे प्रिय लगती है

    अपनी भूख

    मैं अपने गाँव को अपने धान के लिए करता हूँ बार-बार याद

    यदि मैं फ़क़ीर होता तो

    अनिद्रा के मारे तमाम लोगों को

    देता अपने धान के दाने

    कि वे बाँध लें ताबीज में

    आएगी अच्छी नींद

    जिन्हें नहीं लगती भूख

    वे भी रखें

    मैं नहीं जानता मेरे धान के खेत कब तक बचेंगे?

    मैंने साँस के बैंक के लॉकर में

    रख दी है थोड़ी-सी धान की ख़ुशबू

    जैसा कि तय है मैं नहीं रहूँगा किसी रोज़

    तो टूट जाएगा अपने आप वह लॉकर

    और हवा में फैल जाएगी धान की गमक

    धान की ख़ुशबू में इस पृथ्वी पर ज़िंदा रहूँगा मैं

    उसी के आस-पास...

    काश

    ख़ुशबू से भी रोपा जा सकता धान!

    ख़ुशबू भी

    एक बीज ही तो है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अभिज्ञात
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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