हमर निस्तब्धताकेँ थपकी दैत अछि चान
hamar nistabdhtaken thapki dait achhi chaan
सुस्मिता पाठक
Susmita Pathak

हमर निस्तब्धताकेँ थपकी दैत अछि चान
hamar nistabdhtaken thapki dait achhi chaan
Susmita Pathak
सुस्मिता पाठक
और अधिकसुस्मिता पाठक
खोलि कऽ अपन खिड़की
हम प्रतिदिन
स्वागत करैत छी
भोरका ठरल हवाक
आँगनमे जमि जाइत अछि
रातिये भरिमे कजरी
ठहरल पानिपर डोलैत अछि शैवाल
कोनो एकान्त खधारिमे
ओकरा खोखरिकेँ
हम फेकि अबैत छी प्रतिदिन
आँगन सेहो उपकृत भऽ उठैत होयत
हम गाछ केर पातक
सरसराहटक तालमे
रहैत छी दिन भरि गतिमान
ई चिन्ता हमरा लेल
नहि आयल अस्तित्वमे
जे ऊबि जाइत होयत माटि
हमर पदचापसँ
प्रत्येक राति
हमर निस्तब्धताकेँ
थपकी दऽ जाइत अछि चान
तरेगन
हमरा पहुँचसँ बहुत दूर अछि
दिन चढ़िते
सूर्ज
हमर छातीमे होइत अछि।
- पुस्तक : परिचिति (पृष्ठ 19)
- रचनाकार : सुस्मिता पाठक
- प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
- संस्करण : 1997
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