हाशिए के लोग
हम सूक्तियों में जीवन तलाशने वाले लोग
कभी व्याख्याओं में व्यक्त नहीं हो सके
हम तत्सम की गरिमा से निष्कासित
देशज बस्ती के बदतमीज़ बाशिंदे कहलाए
हमारा जीवन मुहावरों का क़र्ज़दार है
मनुष्यता के रजिस्टर से बेदख़ल होकर
हमारा नाम जाति के कोष्ठक में दर्ज हुआ
हमने चाक पर घड़े बनाए जिनमें ऋषि जन्मे
ऋषि ने समुद्र पिया और हम पानी से वंचित हुए
ऋषि ने व्यवस्था बनाई और हम बहिष्कृत हुए
हमारे घड़े उनके सर पर रहे और हम पददलित हुए
हमने गंदगी साफ़ की और गंदे कहलाए
हवा में ख़ुशबू बिखेरने के लिए हमने फूल खिलाए
और ख़ुद अपनी चमड़ी को बच्चों की बिवाइयों पर सिलकर
दुर्गंध को समेटे धरती में खाद बनकर दब गए
हमें समझाया गया कि दुनिया में सिर्फ़ हम मुकम्मल ईमान हैं
एक सफ़ में नमाज़ पढ़ना हमारी पहचान है
हमारी उम्मत अशरफ़ुल इंसान है
हमें ईमान में एक मस्जिद में एक बताकर
बाहर जुलाहे, दर्ज़ी और कसाइयों में बाँटा गया
हमें रोटी खिलाकर बेटी से वंचित किया गया
हम अलग-अलग अक्षरों की एक ही लिपि थे
असल में हम ही अनेकता में एकता की असली तस्वीर थे
हद दर्जे की कायरता छिपाए जलसे में उमड़ी धार्मिक भीड़ थे
हमारे सुख अलग-अलग थे मगर दुख एक
हमारे सपने अलग-अलग थे मगर डर एक
हमारे दोस्त साधारण थे और दुश्मन अनोखे
जिनके शरीर अलग-अलग थे
मगर हर शरीर पर एक ही चेहरा था
उसकी आँखों में ख़ून था रगों में पानी था
विदेशी शराब-सा लाल
क्रूरता की हद तक ख़ानदानी था
- रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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