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बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान

basai ganvain ma hindustan

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान

श्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

और अधिकश्यामसुंदर मिश्र 'मधुप'

    ताल-तलियन मा निर्मल नीर,

    ठाढ़ि महुवन की सुधर सतीर।

    कहूँ पर आँबन केरि कतार,

    कोइलिया गावइ मधुर मल्हार।

    बिलइया कूकर फिरैं उतान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥1॥

    हियाँ हर पत्थरु देउता होइ,

    हियाँ नागन का नेउता होइ।

    फिरैं लीचर गाँइन के संग,

    घुटै कहुँ बाबा जी की भंग।

    घरन की तुलसी ते पहचान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥2॥

    कहूँ पर हरी दूब छतरानि,

    कहूँ पर भादा की अठिलानि।

    कहूँ पर झरुवा फइलति जाइ,

    कहूँ सेउरा-मकरा हरियाइ।

    कहूँ बेलझरा पाक पियरान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥3॥

    पूर बिगहा मा बरगदु फइल,

    बनावइँ गौढ़ी गाईं-बइल।

    चलइ जब लूक अहं मा अंइठि

    करइँ वहि के तर पागुरि बइठि।

    करइँ चरवाहा मंगल-गान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥4॥

    कहूँ ढफ, ढोल, मजीरा बजइ,

    कहूँ तुड़ही सँग तासा सजइ।

    कहूँ बिरहा गावइँ दुइ-चारि,

    हियाँ की संझा बड़ी पियारि।

    उठइ चौपारिन मा घमसान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥5॥

    सुर्ज-तुर्राइँ साँझ का जसइ,

    चन्द्रमा अमरितु नावइ तसइ।

    नखत निकरइँ मारइँ मुसुकानि,

    मिटइ सब दिन भरि केरि थकानि।

    उषा नित करइ सुधा का दान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥6॥

    कहूँ उर्दी,मउठी बउँकानि,

    कहूँ पर लोंबिया की लहरानि।

    देखि मनु लहरइ मकइ-ज्वार,

    हरइ जिउ बजरा केरि कतार।

    फरा खेतन मा सावाँ-धान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥7॥

    कहूँ पर झबरा भरि लहरायँ,

    नीर के बीच कमल मुसकायँ।

    किनारे पर पीपरु हहराइ,

    फुदकिया पीवइ जलु उड़ि जाइ।

    देखि किरिला मनु होइ बिरान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥8॥

    नाउ धनपति मुलु छ्वालइँ घास,

    दुक्खु ना आवइ उनके पास।

    संग खुरपी के गाँवइँ गीत,

    आइ जा मोरे बिछुरे मीत।

    बिरह मा तुमरे व्याकुल प्रान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥9॥

    चैत मा चिड़ियाँ सीला खाइ,

    जाइँ पहिले ते दून मोटाइ।

    देखि जुल्मी जाड़े की नासि,

    ताल मा कमल रचाइनि रास।

    ढाख मा कस टेसू फुलियान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥10॥

    ज्याठ की जल्द अवाई जानि,

    अरहरौ बदलिसि आपनि बानि।

    सरम पुरिखा केरी कुछु खाइ,

    लाग बैसाख घरै गइ आइ।

    घनी पाकरि खाले खरिहान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥11॥

    ज्याठ की हवा लागि गरमाइ,

    करइ हउ-हउ, धरि-धरि खउख्याइ।

    तपंता धरती फूँकइ लाग,

    ताल-तलियन के फूटे भाग।

    मुला कस कही मदारु सिहान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥12॥

    अषढ़वा केरी जगिगइ भागि,

    दिहिसि अम्बर मा त्वापइ दागि।

    तपंतन केरी सबियाँ धारि,

    समर्पनु किहिसि मानि कइ हारि।

    बिजइ पाइनि अद्रा के बान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥13॥

    दउरि के बदरा आवइ लाग,

    धरा पर पानी नावइ लाग।

    गई दुनिया की तपनि बुझाइ,

    सड़उना छुट्टा फिरइ बँवाइ।

    पपिहरा मारइ 'पी-पी' तान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥14॥

    पाइ कै सावन की बउछार,

    प्रकृति उठि नाचइ सौ-सौ बार।

    गवा सावाँ-क्वादउ गदराइ,

    ख्यात मा धानु ठाढ़ लहराइ।

    बहिन-भाई का होइ मिलान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥15॥

    नींब मा झुलुवा कस परि जाइ,

    बहिनि बिरना-घर आवइ धाइ।

    बनइ घुंघरी लहिला का मोइ,

    परबु तिजिया-गुड़िया का होइ।

    उठइ आल्हा केरी घमसान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान।

    आइ गइ भँदईं कारी राति,

    झमाझम झमकइ नित बरसाति।

    होइ कान्हा का घर-घर जलमु,

    जानइ कोऊ यहि का मरमु।

    मघा बरसइ, बादरु गढ़ियान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥17॥

    क्वार का मधुर महीना होहि,

    खतमु हुइ गइ बरखा की बोहि।

    ख्यात मा लगी ज्वार की भीर,

    ताल का होइगा निरमल नीर।

    धरा के सकल कांस फुलियान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥18॥

    लागिगा कातिकु, जरनि बुतानि,

    गलिन मा कुकरी फिरइ उतानि।

    भई सब दूरि अलाइ-बलाइ,

    देवारी दियना रही जलाइ।

    तिमिर का टूटि गवा अभिमान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥19॥

    लागि गा अगहनु ऊँखइ कटइँ,

    बरइ बहना चरखी चलइँ।

    पतोइ-चँदिया केरि बहार,

    दीन का धोउनउ लगइ पियार।

    मूंग-मउंठी की होइ कटान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥20॥

    पूस का पाला कृषि का कालु,

    गरीबन के जी का जंजालु।

    राति काटइँ कोइरा के तीर,

    पुँछइया कौनु हृदय की पीर।

    जाड़ ते कुतवा तक बिल्लान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥21॥

    माघ का सुघर महीना जाग,

    धूप माँ बलु कुछु आवइ लाग।

    छाइ गइ सरसउँ मा पियरानि,

    बौर ते झुकिगै डार उतानि।

    बनावइ लाग बसंतु मचान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥22॥

    लागि गा फागु हवा गइ घूमि,

    बिछे सब बदलैं जामा झूमि।

    फेंकि पियरे पत्तन का भारु,

    कोंपलन ते कीन्हिनि सिंगारु।

    मदन मारइ पुरवा के बान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥23॥

    हियाँ ना जाति-पाँति का भेदु,

    हियाँ ना ऊँच-नीच की बात।

    हियाँ ना राजनीति के दाँव,

    हियाँ ना कूटनीति की घात।

    रहइँ साथइ रामू-रहमान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥24॥

    हियाँ हामिद बाबा के संग,

    करी गंगा का म्याला जाइ।

    हियाँ जब होइ मिलाद सरीफ,

    खुसी मनु होइ बतासा पाइ।

    हियाँ ना धरमु क्यार व्यवधान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥25॥

    हियाँ अब्दुल्ला काका म्वार,

    करइँ हमरे घर कन्यादानु।

    जाईं जब राधा केरे गाँउ,

    करइँ ना भूलि हुवाँ जल-पानु।

    हियाँ ना कउनउ अपन-बिरान।

    बसइ गाँवइँ मा हिन्दुस्तान॥26॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
    • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
    • संस्करण : 1991

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