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दरद के दाह जब

darad ke daah jab

जगन्नाथ

जगन्नाथ

दरद के दाह जब

जगन्नाथ

और अधिकजगन्नाथ

    दरद के दाह जब सुधि के समान हो जाला

    जिन्दगी से बहुत उघटा-पुरान हो जाला

    नेह सूरज ह, आसमान आँखि के पुतरी

    छने में साँझ छने में बिहान हो जाला

    फूल का काँट के गड़ला के पीर कम होला

    ढेर असुराह घाव के निसान हो जाला

    लोर आँखि के पानी गिरे ना चेत रहे

    लोर का जोर से पनिगर परान हो जाला

    रंग तनवें के ना मनवों के मनगरा जाला

    रूप के धूप जब रेखिया-उठान हो जाला

    भुला के गीत कबो नेह के कढ़ा दीला

    बात तनिकी मगर मुदई जहान हो जाला

    स्रोत :
    • पुस्तक : लर मोतिन के (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : जगन्नाथ
    • प्रकाशन : पुष्कर प्रकाशन, बक्सर
    • संस्करण : 1977

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