लखि गुरुजन-बिच कमल
lakhi gurujan bich kamal
लखि गुरुजन-बिच कमल सौं, सीसु छुवायौ स्याम।
हरि-सनमुख करि आरसी, हियैं लगाई बाम॥
नायक ने नायिका को जब गुरुजनों के बीच में बैठा हुआ देखा तो उसने उपहारस्वरूप लाए कमल के पुष्प को अपने सिर से लगा लिया। वास्तव में ऐसा करके नायक ने नायिका से यह भाव व्यक्त किया कि दिन में ही तब तक और जहाँ कमल सिर चढ़ाने को प्राप्त होता रहे, अर्थात् उस सरोवर के पास जिसमें कमल खिले हों, वहाँ आकर वह उसे मिलन का सुख प्रदान करे। नायिका ने अपनी आरसी नायक के सम्मुख कर हृदय से लगा ली और ऐसा करके उसने यह सूचित कर दिया कि 'हरि' अर्थात् सूर्य के रहते हुए मैं आपको आरसी के सदृश्य अर्थात् कमलों वाले तालाब पर ही आकर हृदय से लगाऊँगी।
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 188)
- संपादक : हरिचरण शर्मा
- रचनाकार : बिहारी
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
- संस्करण : 2007
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