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कहत सबै कवि कमल से

kahat sabai kawi kamal se

बिहारी

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कहत सबै कवि कमल से

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    कहत सबै कवि कमल से, मो मत नैन पखानु।

    नतरुक कन इन बिय लगत, उपजतु बिरह-कृसानु॥

    नायिका अपनी अंतरंग सखी से कह रही है कि हे सखी, प्राय: सभी कवियों ने इन नेत्रों को कमल से उपमित किया है, किंतु मेरी धारणा है कि ये नेत्र पत्थर के समान हैं। यदि ये कमल होते तो परस्पर टकराने से शीतलता का संचार होता, किंतु स्थिति इसके विपरीत है कि इनसे आग निकल रही है और वैसे ही जैसे पत्थर से पत्थर टकराता है तो अग्नि निकलती है। व्यंजना यह है कि जब से मेरे ये नैन नायक के नेत्रों से से टकराए हैं, तभी से इनसे विरह की आग निकलती हुई मुझे अर्थात् नायिका को जलाती रहती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 239)
    • संपादक : हरिचरण शर्मा
    • रचनाकार : बिहारी
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
    • संस्करण : 2007

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