जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-3
देवीलाल गोदारा
12 जून 2024
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह तीसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। दूसरी कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए थे। अब तीसरी कड़ी में फिर से प्रोफ़ेसर्स के नाम को यथावत् रखा है और छात्रों के नाम बदल दिए हैं। मैं पुनः याद दिला दूँ कि इसका उद्देश्य न तो किसी का स्तुतिगान करना है और न ही किसी के चरित्र को गिराना है, बल्कि क़िस्सों की यह शृंखला विश्वविद्यालय-जीवन के सुंदर दिनों को स्मृत करने का एक प्रयास भर है।
एक
प्रोफ़ेसर वीरभारत तलवार ख़ुद को नास्तिक बताते थे और किसी भी धार्मिक कर्मकांड का विरोध करते थे। वह ईद या किसी भी ईसाई त्योहार के दिन क्लास नहीं लेते थे और छुट्टी रखते थे। हालाँकि दीवाली के दिन उन्होंने हमारा क्लास टेस्ट लिया था और किन्हीं अज्ञात कारणों से छुट्टी नहीं दी थी।
एक दिन प्रोफ़ेसर तलवार धार्मिक चिह्नों की व्यर्थता पर बात कर रहे थे। हमारी क्लास की एक लड़की दिल्ली से थी और किसी बाबा के संप्रदाय से प्रभावित थी। उसने तलवार जी की बात को काटते हुए कहा—“आप धार्मिक चिह्नों के ख़िलाफ़ हो सकते हैं, यह आपका अधिकार है; लेकिन मैं जिस दिन तिलक लगा लेती हूँ, उस दिन मुझे अंदर से बहुत अच्छा लगता है।”
प्रोफ़ेसर तलवार ने कहा—“तुम्हारे माथे पर तिलक सुंदर लगता है। जब आप अपने आपको सुंदर दिखते हो, तो आत्मविश्वास आता है। तुम्हें अच्छा लगने का सबब वह आईना है, जिसमें तुम अपना मुँह देखती हो; इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। अगर है, तब भी मैं हर बार यही कहूँगा कि माथे का यह छापा व्यर्थ ही है।”
दो
रामविलास शर्मा की तरह प्रोफ़ेसर वीरभारत तलवार भी अपना विरोधी चुनते थे। यह उनके मूड पर निर्भर करता था कि किस विद्यार्थी के साथ कैसा बर्ताव करना है। सभी को तो एक बराबर नंबर नहीं दिए जा सकते थे और चूँकि लिखने में कोई किसी से नहीं पिछड़ता था। इसलिए सेमिनार पेपर जो मौखिक होता था, उसमें किसी को कमतर करने में उनके लिए आसानी हो जाती थी।
एक छात्र था लल्लन सिंह। उसने एक वाक्य लिखा—“रामविलास शर्मा ने गोबर के विद्रोह को दरेरा देकर मार्क्सवाद से जोड़ दिया, जबकि गोबर का मार्क्सवाद से कोई लेना-देना नहीं था।”
तलवार जी को रामविलास जी पर सवाल उठाना स्वीकार न हुआ, उन्होंने लल्लन को लगभग घेरते हुए ‘दरेरा’ शब्द पर आपत्ति जताई। लल्लन ने कहा कि दरेरा शब्द बुरा नहीं है।
प्रोफ़ेसर तलवार बोले—“तुम यहाँ दरेरा देने आए हो?”
लल्लन—“नहीं सर।”
प्रो. तलवार—‘‘दरेरा का मतलब क्या है?”
लल्लन—“सर, मैंने यह शब्द नहीं बनाया है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी इसका प्रयोग किया है।”
प्रो. तलवार—“तो तुम हजारीप्रसाद हो?”
लल्लन—“नहीं सर! मैं लल्लन हूँ। अगर मैं हजारीप्रसाद होता तो आपको क्या लगता है, मैं रामविलास शर्मा को गंभीरता से लेता।”
अंततः लल्लन ने थोक में नंबर कटवाए और सर की लालसा भी पूरी हुई।
तीन
पुराने अध्यापकों में एक विद्वान् प्रोफ़ेसर थे, जिनका नाम अँग्रेज़ी में था। शरारती छात्रों ने उनके नाम का अनुवाद किया—‘प्रबंधक पांडेय’।
हमारे टर्म पेपर के लिए एक महीना पहले प्रश्न बता दिया जाता था और जमा करने की तारीख़ भी। एक बार ऐसा हुआ कि एक ही दिन में प्रो. तलवार और प्रो. पांडेय के विषयों के टर्म पेपर जमा करना निर्धारित हुआ। सब परेशान।
एक दिन में दो पेपर जमा करना बहुत मुश्किल था, हालाँकि दोनों प्रोफ़ेसर्स ने एक महीने पहले प्रश्न और जमा करने का दिन नियत कर दिया था; लेकिन जेएनयू में यह रिवाज बना हुआ था कि 29 दिन घूमना-फिरना और पढ़ना होता था और जमा करने से पहली रात को पेपर लिखा जाता था। इसलिए पेपर जमा करने की तारीख़ को आगे-पीछे करने के लिए प्रो. तलवार से बात करने की कोशिश की गई। उन्होंने दिए हुए दिन को लोहे पर खींची लकीर कहा और निर्धारित दिन पर पेपर जमा करने का आदेश दिया।
अंततः प्रो. पांडेय जी ने दो दिन अतिरिक्त दिए। पेपर जमा हुए। अगले दिन प्रो. पांडेय जी हँसी-मज़ाक़ के मूड में थे। कुछ छात्रों ने उनके सामने प्रो. तलवार को निर्मम, निष्ठुर और पत्थरदिल कहा और प्रमाण में बीते दिनों की घटना सामने रखी कि उन्होंने हमें एक दिन का भी अतिरिक्त समय नहीं दिया।
बातों-बातों में एकाध छात्र ने पांडेय जी को दयावान् भी बता दिया। प्रो. पांडेय जी ने सारी बातें सुनकर कहा—“अंततः आदमी और तलवार में यही तो फ़र्क़ होता है।”
चार
प्रो. पांडेय समय के बहुत पाबंद थे। अगर 9 बजे की क्लास होती तो 9 बजकर 5 मिनट पर वह क्लासरूम में आ जाते और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लेते। फिर जो देर से आता, वह क्लास में नहीं बैठ सकता था। बाद वाले पाँच मिनट में आने वालों को भी वह घूरकर देखते थे। क्लास शुरू होने के बाद जो छात्र बाहर जाना चाहता, सर का आग्रह था कि चुपचाप क्लास को डिस्टर्ब किए बिना चला जाए।
एक छात्र की कई क्लासेज़ छूट चुकी थीं और वह प्रो. पांडेय जी के उसूलों से अनजान था। एक दिन बीच क्लास में मुट्ठी बाँधकर सबसे छोटी उँगली सीधी तानकर खड़ा हो गया। सर ने जाने का इशारा किया, जो उसे समझ में नहीं आया।
अंततः पांडेय जी खीझकर बोले—“तुम खंभे की तरह तनकर खड़े हो गए हो। जाओ जहाँ जाना है।”
छात्र—“सर, वाशरूम जाना है।”
प्रो. पांडेय—“तो कौन-सा ज्ञानपीठ लेने जा रहे हो! जो सबको बताना है। तुम जहाँ जाना चाह रहे हो, पूरी क्लास को प्रमाण देने की ज़रूरत नहीं है।”
पाँच
प्रो. पांडेय की सूरदास के काव्य पर स्थापना रही है कि सूरदास गाँव और किसान के जीवन के पहले प्रस्तोता हैं। उनके काव्य में किसानी जीवन के कई क्रियाकलाप दर्ज हुए हैं। हरियाणा के एक गाँव से आया हुआ होनहार उनसे बहुत प्रभावित हुआ। वह अपनी ठेठ किसानी वेशभूषा में क्लास लेने आने लगा।
एक दिन पांडेय जी ने उसकी ड्रेस की तारीफ़ की, तो उसने सर को बताया कि वह किसान परिवार से संबंध रखता है और उनसे बहुत प्रभावित हो गया है और इसलिए पैंट-शर्ट की जगह ठेठ कुरता-पायजामा पहनने लगा है। सर बहुत हाज़िरजवाब रहे हैं। उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा कि इतने प्रभावित मत हो जाना कि कल को कंधे पर हल लेकर आ जाओ और भाषा केंद्र पर जुताई शुरू कर दो।
पांडेय जी के वह शिष्य आजकल एक अच्छे विश्वविद्यालय में अध्यापक हैं।
~~~
अगली बेला में जारी...
पहली और दूसरी कड़ी यहाँ पढ़िए : जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से | जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-2
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
28 नवम्बर 2025
पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’
ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि
18 नवम्बर 2025
मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं
Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल
30 नवम्बर 2025
गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!
मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक
23 नवम्बर 2025
सदी की आख़िरी माँएँ
मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,
04 नवम्बर 2025
जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक
—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें