बेला तार की ‘द ट्यूरिन हॉर्स’ देखते हुए
महेश मोड़जी 21 जुलाई 2024
...सर्वाधिक तुच्छ और साधारण जीवन में भी एक अपार महानता निहित होती है। ‘द ट्यूरिन हॉर्स’—मात्र एक फ़िल्म नहीं है; यह एक गहन अनुभूति है। एक आध्यात्मिक यात्रा है। यह फ़िल्म हमें आमंत्रित करती है कि हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को ‘वर्क ऑफ़ आर्ट’ की भाँति जीएँ—चाहे वह कितना ही कठिन या निरर्थक क्यों न प्रतीत हो।
जब पहली बार मैंने बेला तार (Béla Tarr) की ‘द ट्यूरिन हॉर्स’ (The Turin Horse) देखी, तो ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे एक अनंत गहराई वाले कुएँ में धकेल दिया हो। वह कुआँ था—हमारे अस्तित्व की निरर्थकता का; जहाँ हर बूँद एक सवाल थी और हर लहर जवाब का इंतज़ार करती पुकार। फ़िल्म के हर फ़्रेम ने मुझे अपने भीतर के उस हिस्से में झाँकने पर मज़बूर किया, जहाँ हम अपने होने के अर्थ को छिपाकर रखते हैं।
बेला तार—वह महान चित्रकार जो सिनेमा के कैनवास पर जीवन के सबसे जटिल प्रश्नों को उकेरता है। इस बार वह अपने साथ एक थका हुआ घोड़ा लेकर आया है। वह घोड़ा, जो एक समय नीत्शे के पागलपन का साक्षी बना, अब हमारे सामने खड़ा है—हारा हुआ, फिर भी अडिग। यह घोड़ा मानवता और पशुता के बीच के उस सूक्ष्म अंतर का प्रतीक है, जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं।
फ़िल्म शुरू होती है और हम एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करते हैं, जहाँ समय ने अपनी गति खो दी है। एक वृद्ध और उसकी बेटी—दो ऐसे प्राणी जो शायद इस सृष्टि के अंतिम मानव हैं। उनका जीवन एक ऐसा चक्र है, जो बिना किसी परिणाम या उद्देश्य के निरंतर घूमता रहता है—ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी सूर्य के चारों ओर।
बेला तार का कैमरा इस निस्सारता को ऐसे क़ैद करता है, जैसे कोई कवि अपने शब्दों में विश्व की पीड़ा को। लंबे और धीमे शॉट्स में वह समय को इस तरह खींचते हुए बाँधता है—मानो वह एक लचीली चादर हो। हर दृश्य ऐसा चित्र है, जिसमें जीवन अपने सबसे कठोर और नग्न रूप में प्रकट होता है। काली-सफ़ेद छवियाँ इस यथार्थ को और भी तीखा बना देती हैं, जहाँ सौंदर्य और कुरूपता एक ही सिक्के के दो पहलू बन जाते हैं।
...और फिर वह अविराम और निर्दयी हवा—उसकी ध्वनि में एक ऐसा संगीत है, जो ब्रह्मांड की निरपेक्षता का गान करता है। यह हवा जो इन दोनों के जीवन को नियंत्रित करती है; उन्हें निरंतर स्मरण कराती है कि वे कितने अधम और नगण्य हैं। यह हवा मानो कह रही हो—“तुम्हारा अस्तित्व एक क्षणभंगुर स्वप्न है, जो मेरी एक साँस में मिट सकता है।”
जैसे-जैसे दिन बीतते हैं, प्रकृति अपना रौद्र रूप धारण करने लगती है। प्रकाश क्षीण होता जाता है, मानो सृष्टि स्वयं अपने अंत की ओर अग्रसर हो।
कुएँ का सूखना—क्या यह जीवन के स्रोत का अवसान है या फिर एक नए युग का सूत्रपात?
घोड़े का चलना बंद कर देना—क्या यह जीवनेच्छा की पराजय है या फिर एक अंतिम विद्रोह?
लेकिन इस निराशा के बीच भी एक अद्भुत, अनिर्वचनीय सौंदर्य विद्यमान है। वह वृद्ध और उसकी पुत्री, जो बिना किसी शिकायत के अपने भाग्य को स्वीकार करते हैं; वे मानव आत्मा के अजेय साहस के प्रतीक हैं। उनके चेहरे के परावर्तन पर दिखने वाला वह मूक संकल्प हमें बताता है कि जीवन के सबसे अंधकारमय क्षणों में भी एक अलौकिक गरिमा निहित होती है।
‘द ट्यूरिन हॉर्स’—मात्र एक फ़िल्म नहीं है; यह एक गहन अनुभूति है। एक आध्यात्मिक यात्रा है। यह हमें स्मरण कराती है कि जीवन की परम सत्यता उसकी निरर्थकता में निहित है और इस निरर्थकता को आलिंगन करना ही सर्वोच्च मुक्ति है।
यह फ़िल्म हमें उस दर्शन की ओर ले जाती है, जहाँ अल्बैर कामू ने कहा था—“एक बार जब हम इस बात को स्वीकार कर लेते हैं कि सब कुछ व्यर्थ है, तो हम जीवन को एक उत्सव की तरह जीना शुरू कर सकते हैं।”
आख़िर जब अंतिम दीप भी विलुप्त हो जाता है, तो क्या शेष रहता है? क्या यह घनघोर अंधकार—मृत्यु का प्रतीक है या फिर एक नए आरंभ का? बेला तार हमें कोई स्पष्ट जवाब नहीं देते। वह केवल एक प्रश्न छोड़ जाते हैं—एक ऐसा प्रश्न जो हमारे अंतस्तल में अनवरत गूँजता रहता है।
यह फ़िल्म हमें आमंत्रित करती है कि हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को ‘वर्क ऑफ़ आर्ट’ की भाँति जीएँ—चाहे वह कितना ही कठिन या निरर्थक क्यों न प्रतीत हो। यह फ़िल्म कहती है कि जीवन एक ऐसी कविता है, जिसे हम प्रतिदिन रचते हैं—कभी मधुर, कभी कटु, लेकिन सदैव अर्थ पूर्ण।
इस अद्वितीय कृति के माध्यम से बेला तार हमें एक ऐसी यात्रा पर ले जाते हैं, जो हमारे अस्तित्व के मूल तत्त्व तक पहुँचती है। वह दर्शाते हैं कि सर्वाधिक तुच्छ और साधारण जीवन में भी एक अपार महानता निहित होती है। वह हमें स्मरण कराते हैं कि प्रत्येक श्वास, प्रत्येक पल एक अद्भुत चमत्कार है—एक ऐसा चमत्कार जिसे हम प्रायः भूल जाते हैं।
‘द ट्यूरिन हॉर्स’ एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो हमें ललकारती है कि हम अपने अस्तित्व के अर्थ को पुनः परिभाषित करें। यह हमें प्रेरित करती है कि हम जीवन के इस महान काव्य को पूर्ण उत्साह और संवेदना के साथ जीएँ। तब भी जब वायु हमारे विरुद्ध प्रवाहित हो रही हो और प्रकाश क्षीण होता जा रहा हो।
...क्योंकि अंततः यही तो जीवन है—एक ऐसी यात्रा जो अनवरत चलती रहती है। एक ऐसा गीत जो कभी समाप्त नहीं होता।
‘द ट्यूरिन हॉर्स’ हमें जीवन की गहनतम सच्चाइयों से रूबरू कराती है। हमारे अस्तित्व के प्रश्नों को नए सिरे से परिभाषित करती है और हमें एक ऐसे दर्शन की ओर ले जाती है, जहाँ निरर्थकता में भी एक गहन अर्थ छिपा होता है। यह फ़िल्म हमें सिखाती है कि जीवन की सबसे बड़ी विजय उसकी निरंतरता में है—उस निरंतरता में जो हर सुबह के साथ नए सिरे से आरंभ होती है। हर चुनौती के साथ दृढ़ होती जाती है और अंततः मृत्यु के सम्मुख भी अपना सिर नहीं झुकाती।
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