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सुरेंद्र वर्मा

सुरेंद्र वर्मा के उद्धरण

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दरिद्रता अभिशाप है और वरदान भी। वह व्यक्ति रूप में एक विशिष्ट समय तक तुम्हारा परिसंस्कार करती है—पर यह अवधि दीर्घ नहीं होनी चाहिए।

असफल कवि सफल शिक्षक नहीं हो सकता।

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रोहिणी को केवल चंद्रमा ही चाहिए।

फल की चिंता के साथ किया गया कर्म, कर्म-अवधारणा का अपमान समझा जाना चाहिए।

कलात्मक महत्वाकांक्षा घातक होती है—प्रियजनों को संतप्त करती है।

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तपोवन से शमशान तक—केवल विवाह-विमर्श!

अपनी सीमाओं के हाशिए झकझोरने का यही एक उपाय है—हर जड़ और चेतन के साथ संयुक्त होने का प्रयास।

परित्याग करो और सुखी हो जाओ।

जलते और चलते रहो।

जिन प्राणियों की जीवन-शैली स्निग्ध और धवल होती है, उन्हीं के जीवन में कविता होती है। हमारा जीवन शुष्क और मलिन है। हम उस कोटि को छू भी नहीं सकते।

एक अभिनीत स्थल बदलने से दृश्य बदल जाता है।

स्त्री जन्मजात अभिनेत्री होती है।

स्वीकार करना बहुत पीड़ादायक होता है, पर जीने के लिए करना होता है।

सजग पर्यवेक्षण, सटीक अभिव्यक्ति के सुचिंतित प्रकार, और कगार तोड़ने को व्याकुल कल्पना जिन कवियों के पास नहीं, उन्होंने उपमाओं को रंगहीन, बासी और थोथा बना दिया है।

भावना सतत परिवर्तनशील है।

कई बार यंत्रणा तर्क के परे होती है।

जिनके पास साधन होते हैं, उनके पास दृष्टि नहीं होती, जिनके पास दृष्टि होती है—केवल वही होती है, और शून्य होता है।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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