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रहीम

1556 - 1627 | दिल्ली

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

रहीम का परिचय

उपनाम : 'रहीम'

मूल नाम : अब्दुर रहीम ख़ानख़ाना

जन्म : 17/12/1556 | दिल्ली

निधन : आगरा, उत्तर प्रदेश

अब्दुर्रहीम खाँ खानखाना मध्ययुगीन नीति और दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं। अकबर के दरबार के हिन्दी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये स्वयं भी कवियों के आश्रयदाता थे। केशव, आसकरन, मण्डन, नरहरि और गंग जैसे कवियों ने इनकी प्रशंसा की है। ये अकबर के अभिभावक बैरम खाँ के पुत्र थे।

इनका जन्म सन् 1556 ई. में हुआ था। जब इनकी अवस्था पाँच वर्ष की थी, गुजरात के पाटन नगर में इनके पिता की हत्या कर दी गयी। इनका पालन-पोषण स्वयं अकबर की देख-रेख में हुआ। अकबर ने 1572 ई. में गुजरात की चढ़ाई के अवसर पर इन्हें पाटन की जागीर प्रदान की। अकबर के शासन में इनकी निरन्तर पदोन्नति होती रही। गुजरात विजय के बाद इन्हें गुजरात की सूबेदारी मिली। इनकी कार्यक्षमता से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें 'मीर अर्जु' का पद, 'खानखाना' और ‘वकील’ की उपाधि और पंचहजारी का मनसब प्रदान किया। जहाँगीर के शासन् के प्रारम्भिक दिनों में इन्हें पूर्ववत सम्मान मिलता रहा। शाहजहाँ के विद्रोही होने पर इन्होंने जहाँगीर के विरुद्ध उनका साथ दिया। 1625 ई. में क्षमायाचना कर लेने से पुनः 'खानखाना' की उपाधि मिली। 1626 ई. में सत्तर वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गयी।

रहीम का पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं था। इनके नीति के दोहों में कहीं-कहीं जीवन की दुःखद अनुभूतियाँ मार्मिक उद्गार बनकर व्यक्त हुई हैं। रहीम अरबी, तुर्की, फारसी, संस्कृत और हिन्दी के अच्छे जानकार थे! हिन्दू-संस्कृति से ये भलीभाँति परिचित थे। इनकी नीतिपरक उक्तियों पर संस्कृत कवियों की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। कुल मिलाकर इनकी ग्यारह रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। इनके प्रायः 300 दोहे 'दोहावली' नाम से संगृहीत हैं। दोहों में ही रचित इनकी एक स्वतन्त्र कृति 'नगर शोभा' है। इसमें 142 दोहे हैं। इसमें विभिन्न जातियों की स्त्रियों का शृंगारिक वर्णन है।

रहीम अपने बरवै छन्द के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका 'बरवै नायिका भेद' अवधी भाषा में नायिका-भेद का सर्वोत्तम ग्रन्थ है। नायिका भेद के इस प्रसिद्ध ग्रन्थ में जाति, गुण, अवस्था आदि के अनुसार विभिन्न नायिकाओं के 79 और नायकों के 11 भेदों का मात्र उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। इसमें मतिराम के लक्षणों को मिलाकर इसे लक्षण-लक्ष्य पति का काव्य बना दिया गया है। रहीम के ये बरवै अत्यन्त मोहक और कलात्मक हैं। इसमें जो मनोहर और छलकते हुए चित्र हैं वे भी सच्चे हैं-कल्पना के झूठे खेल नहीं हैं। उनमें भारतीय प्रेमजीवन की सच्ची झलक है।

रहीम ‘शृंगार सोरठ' ग्रन्थ का उल्लेख मिलता है किन्तु अभी यह प्राप्त नहीं हो सका है। रहीम की एक कृति संस्कृत और हिन्दी खड़ीबोली की मिश्रित शैली में रचित 'मदनाष्टक' नाम से मिलती है। इसका वर्ण्य-विषय कृष्ण की रास-लीला है और इसमें मालिनी छन्द का प्रयोग किया गया है। इनके कुछ भक्ति विषयक स्फुट संस्कृत श्लोक 'रहीम काव्य' या 'संस्कृत काव्य' नाम से प्रसिद्ध हैं। कवि ने संस्कृत श्लोकों का भाव छप्पय और दोहा में भी अनूदित कर दिया है। कुछ श्लोकों में संस्कृत के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग हुआ है। रहीम बहुज्ञ थे। इन्हें ज्योतिष का भी ज्ञान था। इनका संस्कृत, फारसी और हिन्दी मिश्रित भाषा में ‘खेट कौतुक जातकम्' नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ भी मिलता है। रहीम लिखित 'रासपंचाध्यायी' का उल्लेख भी मिलता है किन्तु यह रचना प्राप्त नहीं हो सकी है। भक्तमाल' में इस विषय के इनके दो पद उद्धृत हैं। विद्वानों का अनुमान है कि ये पद 'रासपंचाध्यायी' के अंश हो सकते हैं। रहीम ने 'वाकेआत बाबरी' नाम से बाबरलिखित आत्मचरित का तुर्की से फ़ारसी में अनुवाद भी किया था। इनका एक 'फ़ारसी दीवान' भी मिलता है। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। इनकी विष्णु और गंगासम्बन्धी भक्ति-भावमयी रचनाएँ वैष्णव-भक्ति आन्दोलन से प्रभावित होकर लिखी गयी हैं। नीति और शृंगारपरक रचनाएँ दरबारी वातावरण के अनुकूल हैं। रहीम की ख्याति इन्हीं रचनाओं के कारण है। बिहारी और मतिराम जैसे समर्थ कवियों ने भी रहीम की शृंगारिक उक्तियों से प्रभाव ग्रहण किया है। व्यास, वृन्द और रसनिधि आदि कवियों के नीति विषयक दोहे रहीम से प्रभावित होकर लिखे गये हैं। आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि "इनकी उक्तियाँ ऐसी लुभावनी हुईं कि बिहारी आदि परवर्ती कवि भी बहुतों का अपहरण करने का लोभ न रोक सके।"

रहीम का ब्रज और अवधी दोनों पर समान अधिकार था। शुक्ल ने काव्य-भाषा के आधार पर इनको तुलसी के समकक्ष माना है। उनके बरवै अत्यन्त मोहक हैं। प्रसिद्ध है कि तुलसी को 'बरवै रामायण' लिखने की प्रेरणा रहीम से ही मिली थी। 'बरवै' के अतिरिक्त इन्होंने दोहा, सोरठा, कवित्त, सवैया, मालिनी आदि कई छन्दों का प्रयोग किया है। इनका काव्य इनके सहज उद्गारों की अभिव्यक्ति है। इन उद्गारों में इनका दीर्घकालीन अनुभव निहित है। ये सच्चे और संवेदनशील हृदय के व्यक्ति थे। जीवन में आनेवाली कटु-मधुर परिस्थितियों ने इनके हृदय-पट पर जो बहुविध अनुभूतिरेखाएँ अंकित कर दी थी, उन्हीं के अकृत्रिम अंकन में इनके काव्य की रमणीयता का रहस्य निहित है। इनके 'बरवै नायिका भेद' में काव्यरीति का पालन ही नहीं हुआ है, वरन् उसके माध्यम से भारतीय गार्हस्थ्य-जीवन के लुभावने चित्र भी सामने आये हैं। इस संबंध में आचार्य शुक्ल का कहना है कि रहीम के दोहे वृन्द और गिरधर के पद्यों के समान कोरी नीति के पद्य नहीं हैं। उनमें मार्मिकता है, उनके भीतर से एक सच्चा हृदय झाँक रहा है। जीवन की सच्ची परिस्थितियों के मार्मिक रूप को ग्रहण करने की क्षमता जिस कवि में होगी वही जनता का प्यारा कवि होगा। रहीम का हृदय द्रवीभूत होने के लिए कल्पना की उड़ान की अपेक्षा नहीं रखता था। वह संसार के सच्चे और प्रत्यक्ष व्यवहारों में ही अपने द्रवीभूत होने के लिए पर्याप्त स्वरूप पा जाता था।"

मार्मिक होने के कारण ही इनकी उक्तियाँ सर्वसाधारण में विशेष रूप से प्रचलित हैं। इनके व्यक्तित्व से अकबरी दरबार गौरवान्वित हुआ था और इनके काव्य से हिन्दी समृद्ध हुई है।

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