सिनेमा पर ब्लॉग

सिनेमा ऐसा कला-रूप है

जहाँ साहित्य, संगीत, अभिनय, नृत्य जैसे कलासिक कला-रूपों के साथ ही फ़ोटोग्राफी, एनीमेशन, डिजिटल एडिटिंग, ग्राफ़िक्स जैसे अन्य आधुनिक कला-रूप प्रतिबिंबित होते हैं। आधुनिक समाज और सिनेमा का अनन्य संबंध देखा जाता है, जहाँ दोनों एक-दूसरे की प्रवृत्तियों का अनुकरण करते नज़र आते हैं। इस चयन में सिनेमा विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

साधारण का सहज सौंदर्य

साधारण का सहज सौंदर्य

‘‘जिस शैलजा से तुम यहाँ पहली बार मिल रहे हो मैं उसी शैलजा को ढूँढ़ने आई हूँ, सामने होकर भी मिलती नहीं है, अगर तुम्हें मुझसे पहले मिल जाए न, तो सँभालकर रख लेना।’’ ‘थ्री ऑफ़ अस’ फ़िल्म के लगभग आधा बीत ज

सुदीप्ति
विछोह की ख़ूबसूरती अधूरेपन में है

विछोह की ख़ूबसूरती अधूरेपन में है

रज़िया सुल्तान में जाँ निसार अख़्तर  का लिखा और लता मंगेशकर का गाया एक यादगार गीत है : ‘‘ऐ दिल-ए-नादाँ...’’, उसके एक अंतरे में ये पंक्तियाँ आती हैं : ‘‘हम भटकते हैं, क्यूँ भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा मे

सुदीप्ति
स्मृति-छाया के बीच करुणा का विस्तार

स्मृति-छाया के बीच करुणा का विस्तार

पूर्वकथन किसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अधिकतर काम तलब से ही तो होते हैं। लेकिन ‘लेबर डे’ को

सुदीप्ति

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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