राम नाम में नहीं रे लाग्यो मन तेरा

raam naam me.n nahii.n re laagyo man tera

सैन भगत

सैन भगत

राम नाम में नहीं रे लाग्यो मन तेरा

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    राम नाम में नहीं रे लाग्यो मन तेरा॥

    चाम की छुरहरी चाम की बाँधी, चामी लागा डेरा।

    चामे मुँडे चार मुडावे, समुझि देख मन मोरा॥

    कंधो टूट्यो तेल ढरकायो, होई गया साँझ सेवरा।

    देनों होय सो दे दे झटपट, आई घर की वेरा॥

    चिमटा नहरन और कतरनी, दरपन साहब तेरा।

    सैन भगत मुजरे को आवे, आद-अंत का चेरा॥

    अरे प्राणी! तेरा मन राम नाम में नहीं रमा। तू दिन-भर चमड़े की छुरी और चमड़े की बाँधनी लेकर, चमड़े के ही डेरे में व्यस्त रहता है। चमड़े को ही मूँड़ता, मुँड़ाता रहता है। यह बात तू भलीभाँति समझ ले। तन की साज-सज्जा में ही व्यस्त रहता है। मन को सजाने में तेरा ध्यान नहीं है। अंत समय में तेरा कंधा टूट जाएगा। तेल ढरक जाएगा। यह शीघ्र ही साँझ-सवेरे होने ही वाला है। हे भाई! जो भी सुकर्म करना हो सो कर ले। खरी कमाई कर ले, वरना वापिस घर लौटने की बेला (महाप्रयाण का अवसर) आने ही वाली है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 321)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013

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