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उद्धरण

उद्धरण श्रेष्ठता का संक्षिप्तिकरण हैं। अपने मूल-प्रभाव में वे किसी रचना के सार-तत्त्व सरीखे हैं। आसान भाषा में कहें तो किसी किताब, रचना, वक्तव्य, लेख, शोध आदि के वे वाक्यांश जो तथ्य या स्मरणीय कथ्य के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, उद्धरण होते हैं। भाषा के इतिहास में उद्धरण प्रेरणा और साहस प्रदान करने का काम करते आए हैं। वे किसी रचना की देह में चमकती आँखों की तरह हैं, जिन्हें सूक्त-वाक्य या सूक्ति भी कहा जाता है। संप्रेषण और अभिव्यक्ति के नए माध्यमों में इधर बीच उद्धरणों की भरमार है, तथा उनकी प्रासंगिकता और उनका महत्त्व स्थापना और बहस के केंद्र में है।

संस्कृत के महाकवि और काव्यशास्त्र के आचार्य। 'दशकुमारचरितम्' और 'काव्यादर्श' जैसी कृतियों के लिए समादृत।

1936 -2018

समादृत कवि-कथाकार और संपादक। महादेवी वर्मा और निराला पर लिखीं अपनी किताबों के लिए भी चर्चित।

1824 -1883

आर्य समाज के संस्थापक और हिंदू पुनर्जागरण के प्रमुख विचारक।

1833 -1909

सतसई परंपरा के नीति कवि।

1820 -1898

समादृत गुजराती कवि, संपादक और समाज-सुधारक। 'मिथ्याभिमान' कृति के लिए उल्लेखनीय।

1922

कवि-गीतकार, निबंधकार और नाटककार। 'भारत माँ की लोरी', 'पुरवैया के ऊपर', 'जीवन और जवानी' आदि काव्य-संग्रहों के लिए उल्लेखनीय।

1930 -1966

सुप्रसिद्ध आलोचक, रंग-समीक्षक और गद्यकार। उनकी स्मृति में ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’ प्रदान किया जाता है।