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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

प्रसादजी की दृष्टि में बाह्य-वास्तव के तक़ाज़े से; अपने भीतरी ज्ञान का तक़ाज़ा—अधिक महत्वपूर्ण और निर्णायात्मक था।