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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

प्रसादजी दार्शनिक थे। उनकी दार्शनिक ज्ञान-व्यवस्था ही ऐसी थी; जो वर्तमान सभ्यता-स्थिति की विषमताएँ कम करने का उपाय तो बताती थी, किंतु आमूल क्रांतिकारी परिवर्तन का ध्येय नहीं रख सकती थी।