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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

प्रणय, प्रेम! जब सामने आते हुए नीव्र आलोक की तरह आँखों में प्रकाश-पुंज उड़ेल देता है, तब सामने की वस्तुएँ और भी स्पष्ट हो जाती हैं।