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महात्मा गांधी के उद्धरण

मनुष्य के डरने की एक ही वस्तु है—अपना विकारी चित्त। ईश्वर का डर कहिए, अधर्म का डर कहिए, या अपने विकार रूपी शत्रु का डर कहिए, तीनों एक ही हैं। यदि विकार न हों तो अधर्म नहीं हो सकता; और अधर्म न हो तो 'ईश्वर का डर'—यह शब्द प्रयोग ही अयुक्त हो जाता है।