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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

मनुष्य के बौद्धिक उपादान क्रमशः विकसित होते हैं, बदलते हैं किंतु के यथार्थ की गति के साथ ही बदलते रहेंगे, विकासमान होंगे—यह आवश्यक नहीं होता। यथार्थ बहुत आगे बढ़ जाता है विकास-क्रम में, बौद्धिक उपादान पीछे छूट जाते हैं—कभी-कभी।