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गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

मैं समझता हूँ कि किसी भी साहित्य का ठीक-ठाक विश्लेषण तब तक नहीं हो सकता, जब तक हम उस युग की मूल गतिमान सामाजिक शक्तियों से बननेवाले सांस्कृतिक इतिहास को, ठीक-ठाक न जान लें।